Book Title: Anusandhan 2012 07 SrNo 59
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 117
________________ ११० अनुसन्धान-५९ दर्शावेली अनन्तता कई रीते घटशे ? (वि.ण. २२५) २. केवलज्ञान-दर्शननां आवारक कर्मोनो क्षय पण आ रीते निरर्थक बनशे. कारण के अ क्षयथी प्राप्त थनारां केवलज्ञान-दर्शन ओक समयथी वधारे तो टकतां नथी. (वि.ण. २३२) ३. आवारक कर्मो पण न होय अने अन्य कोई प्रतिबन्धक पण न होय अने छतांय केवलज्ञान-दर्शन अक अक समय टकीने नाश पामी जाय, अमां कारणभूत कोण ? कोई ज नहीं. माटे वगर कारणे ज ते नाश पामे छे ओम स्वीकारतुं पडे. अने ओम स्वीकारवा कयो बुद्धिमान पुरुष तैयार थाय? (वि.ण. २३९) ४. केवलज्ञान वखते केवलदर्शन न होवाथी केवली भगवन्त असर्वदर्शी बनशे तेमज केवलदर्शन काले केवलज्ञान न होवाथी असर्वज्ञ बनशे. तो केवली भगवन्तने आपणे क्यारेय सर्वज्ञ-सर्वदर्शी तरीके तो ओळखी ज नहीं शकीओ. (वि.ण. २४६) माटे आवा दोषोथी बचवा माटे केवली भगवन्तने सदाकाल ओकसाथे केवलज्ञान अने केवलदर्शन प्रवर्ते छे ओम स्वीकारवू जोइओ. क्रमवादी - आपणे अंक दृष्टान्त जोइओ. मतिज्ञान अने श्रुतज्ञान पोतपोतानां आवरणोना क्षयोपशमथी प्रगटे छे.११ आ बन्ने ज्ञानो छद्मस्थ अवस्थानां ज्ञानो छे. अने छद्मस्थ अवस्थामां कोई पण ज्ञान अन्तर्मुहूर्तथी१२ ओछु के वधु टकतुं नथी अने ओक साथे बे ज्ञान होतां नथी. तेथी अन्तर्मुहूर्त सुधी मतिज्ञानोपयोग अने अन्तर्मुहूर्त सुधी श्रुतज्ञानोपयोग ओवी परम्परा अन्य ज्ञान-दर्शनोना उपयोग सुधी चाल्या करे छे. मतिज्ञान अने श्रुतज्ञाननी उत्कृष्ट स्थिति ६६ सागरोपम१३ जेटली होय छे अने अटलो समय आ ज्ञान धरावनारो जीव मतिज्ञानी-श्रुतज्ञानी तरीके ओळखाय छे. हवे आ ठेकाणे तमे जे दोषो केवलज्ञान-दर्शनना क्रमिक उपयोग सन्दर्भे आप्या ते तमामे तमाम आपी शकाय तेम छे : १. मतिज्ञानोपयोग के श्रुतज्ञानोपयोग जो अन्तर्मुहूर्तथी वधु समय रहेतो ज न होय तो ओ बन्नेनी ६६ सागरोपमनी स्थिति कई रीते सम्भवे ? २-३. पोतपोतानां आवरणोनो क्षयोपशम

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