Book Title: Anusandhan 2012 07 SrNo 59
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जून - २०१२
१०९
तो आ बन्ने क्रियाओने अेक कई रीते गणी शकाय ?" (वि.ण. २००)
अ. - दर्शन अव्यक्त होय छे अने केवली अवस्थामां तो अव्यक्तता होती नथी. तो केवली भगवन्तने व्यक्त केवलज्ञानथी पृथक् अव्यक्त केवलदर्शन केवी रीते सम्भवे ? अक तरफ केवलज्ञानी कहेवा अने बीजी तरफ अमने पदार्थो अव्यक्त रहे छे ओम कहेवू - आमां विरोध नथी ? (वि.ण. २१९)
क्र. - 'दर्शन अव्यक्त होय छे' आ नियम छाद्मस्थिक दर्शनो पूरतो ज समजवानो छे. केवलदर्शन तो सघळाये द्रव्य-पर्यायोने जोतुं होवाथी, तेम ज पोताना आवरणना सर्वथा क्षयथी उद्भूत होवाथी व्यक्त ज होय छे. माटे केवली भगवन्तने केवलज्ञानथी पृथक् केवलदर्शननो उपयोग स्वीकारवामां कोई ज दोष नथी. (वि.ण. २२०-२२१)
वास्तवमा दोष तो केवलदर्शनने केवलज्ञानथी जुदुं न स्वीकारवामां छे. कारण के ज्ञान हमेशां विषयभूत पदार्थोने जाणी शके छे, जोई शकतुं नथी. जोवा माटे तो दर्शन ज जोइओ. माटे केवलदर्शनना स्वतन्त्र अस्तित्वने नकारनाराओना मते तो केवली भगवन्त सर्व पदार्थोने जोई शकता नथी, एम ज मानवं पडे. (वि.ण. २२२)
आम, केवलज्ञान अने केवलदर्शन स्वतन्त्र अने परस्पर पृथक् बाबतो छे ओम नक्की थयु. हवे तेमां पण क्रमवादीओना मते ओक समय केवलज्ञान अने ओक समय केवलदर्शन अम क्रमिक परम्परा प्रवर्ते छे, ज्यारे युगपद्वादीओ बन्नेने अलग समजवा छतां समानकालीन गणावे छे. आ बन्ने मतोनां मन्तव्यने बराबर समजवा माटे आपणे युगपद्वाद-क्रमवादनी चर्चा विशेष-णवतिना ज आधारे सक्षेपमां जोइशुं. युगपद्वाद-क्रमवादनी चर्चा युगपद्वादी - १. आगमोमां केवलज्ञान अने केवलदर्शन बन्नेने सादिअपर्यवसित गणाववामां आव्यां छे. हवे तमारा मते तो केवलज्ञानना समये केवलदर्शन नथी होतुं अने केवलदर्शनना समये केवलज्ञान नथी होतुं. तो आ रीते तो केवलज्ञान-दर्शन उत्पादविनाशी ज सिद्ध थया. तो ओमनी शास्त्रोमां

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