Book Title: Anusandhan 2012 07 SrNo 59
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान-५९
मलधारी श्रीहेमचन्द्राचार्ये विशेषावश्यक - टीकामां स्तुतिकारने (-सिद्धसेन दिवाकरजीने) अभेदवादी मान्या छे. उपाध्याय श्रीयशोविजयजी भगवन्ते पण ज्ञानबिन्दुमां उद्धृत सन्मति - गाथाओना स्वोपज्ञ विवेचनमां श्रीअभयदेवसूरिजीने अनुसरीने श्रीसिद्धसेनाचार्यने अभेदवादी गणाव्या छे. पण्डित सुखलालजीना ज्ञानबिन्दुपरिशीलन, दर्शन और चिन्तन व ग्रन्थो जोतां जणाय छे के तेओ दिवाकरजीने अभेदवादी ज समजे छे. श्रीजयसुन्दरसूरिकृत सन्मतितर्क - विवेचनमां पण सिद्धसेन दिवाकरजीना मतने अभेदवादस्थापक ज जणाववामां आव्यो छे. मतलब के प्राचीन कालथी ज दिवाकरजीनी अभेदवादना स्थापक तरीके प्रसिद्धि रही छे अने आजे तो ओ बाबतमां भाग्ये ज कोईने शङ्का हशे .
परन्तु, आनी सामे सिद्धसेन दिवाकरजी युगपद्वादना समर्थक हता ते माटेनां साक्ष्यो पण अवलोकनीय छे :
*श्रीहरिभद्रसूरिजी श्रीनन्दिसूत्रनी टीकामां त्रणे वादोना पुरस्कर्ताओनां नाम सूचवतां जणावे छे के
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“केचन सिद्धसेनाचार्यादयो भणन्ति । किम् ? युगपदेकस्मिन्नेव काले जानाति पश्यति चेत्येकः केवली नत्वन्यः नियमान्नियमेन । अन्ये जिनभद्रगणिक्षमाश्रमणप्रभृतयः एकान्तरितं जानाति पश्यति चेत्येवमुपदिशन्ति, श्रुतोपदेशेन यथाश्रुतानुगमानुसारेणेत्यर्थः । अन्ये तु वृद्धाचार्या न नैव पृथक् पृथग्दर्शनमिच्छन्ति जिनवरेन्द्रस्य केवलिन इत्यर्थः । किन्तर्हि ? यदेव केवलज्ञानं तदेव से तस्स केवलिनो दर्शनं ब्रुवते । "
आमां स्पष्टपणे श्रीहरिभद्रसूरिजी भगवन्ते दिवाकरजीने युगपद्वादी गणाव्या छे, के जे तेमने अभेदवादी गणावता श्रीअभयदेवसूरिजीना मतथी जुदी पडती बाबत छे. उपाध्यायजी भगवन्ते ज्ञानबिन्दुमां आ मतभेदनुं समाधान करवा प्रयास कर्यो छे के
“यत्तु युगपदुपयोगवादित्वं सिद्धसेनाचार्याणां नन्दिवृत्तावुक्तं तदभ्यु– पगमवादाभिप्रायेण, न तु स्वतन्त्रसिद्धान्ताभिप्रायेण, क्रमाक्रमोपयोगद्वयपर्यनुयोगानन्तरमेव स्वपक्षस्य सम्मतावृद्भावितत्वादिति द्रष्टव्यम् ।' (दिवाकरजीओ सन्मतिमां क्रमवादनुं खण्डन करवा माटे सौ प्रथम युगपद्वादनुं अवलम्बन लीधुं छे, अने त्यारबाद क्रमवादनी साथे ने साथे युगपद्वादनुं पण खण्डन करीने

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