Book Title: Antarlok Me Mahavir Ka Mahajivan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 7
________________ Second Proof Dt. 31-3-2016 7 द्वारों को खोलती गई। अंतस् में ध्यान, बाहर में उसका प्रतिबिंब । प्रथम बंद आंखों से महावीर का, स्वात्मा का ध्यान और बाद में खुली आंखों से भी "खुले नैन पहिचानो हँसी हँसी सुंदर रूप निहारो ! साधो सहज समाधि भली" (कबीर) खुली आंखों के सहजसमाधियत् ध्यान का परिदर्शन का, फिर उदाहरण दिया है सहजानंदघनजी ने श्रीमद्जी की सहज समाधि दशा का वर्णन करते हुए - 44 ? सम्भव था ।..." (परमगुरु प्रवचन- १ ) "व्यापार करते हुए भी सहज समाधि थी उनकी... और व्यापार भी कितना बड़ा झवेरी बाज़ार में व्यापारी बैठे हैं... सभी को व्यापार के जवाब दिये, पर भीतर की सहज समाधि में कोई फर्क नहीं • महावीर दर्शन - महावीर कथा . योगियों को कंदराओं में भी जो असम्भव, वह उन्हें मोहमयी नगरी मुम्बई में बैठकर भी ***** - तो यह 'परि दर्शन' हमारा भी आधार बन सकता है 'महावीर दर्शन' का महावीर के अंतस्स्वरूप दर्शन का । सद्गुरु- परमगुरु- संकेतित, प्रेरित इसे परिदर्शन के विषय में अनेक निष्पत्तियाँ और अनुभूतियाँ हैं, जो स्थल-मर्यादा के कारण यहाँ अधिक सम्भव नहीं । (देखें, "जिनभक्ति की अनुभूतियाँ" ) ग्रंथों का परिशीलन - अध्ययन उन्मुक्त दृष्टि से : " उपर्युक्त परिदर्शन' की बाह्यांतर ध्यान की दृष्टि पूर्वक हमारा बाह्य साक्ष्य पाने ग्रंथ परिशीलन भी सदा चलता रहा महावीर के विराट महाज़ीवन विषयक । इस उपक्रम में पूर्वेक्ति आधारभूतसर्वाधिक आधारभूत महावीर जीवनी ग्रंथ की खोज लगातार बनी रही। सारे सूचित ग्रंथ और जब जब, जो जो मिलते गये, उन सब की । यह खोज अब भी जारी ही है। किसी अध्येता का, विद्वान महाशय का कुछ भी साहित्य उपलब्ध होता है तो हम सानन्द उसका सार पा लेते हैं - जिज्ञासा, गुणतथ्य-ग्राहकता एवं तुलनात्मक उन्मुक्त चिंतन सह । परिभ्रमण, प्रवास, पदयात्राएँ, विद्यायात्राएँ, क्षेत्र - संस्पर्शनायुक्त तीर्थयात्राएँ : (7) पुण्ययोग से इन सब के अवसर, अनेक रूपों में, बाल्यावस्था से ही प्राप्त होते रहे । भगवंत के महाजीवन के अध्ययन - परिदर्शन की खोज चली तब से तो एक विशेष दृष्टि बनी रही । सभी क्षेत्र प्रदेशों के सभी तीथों में महावीर जीवन से सम्बन्धित वैशाली, राजगृही, पावापुरी, नालन्दा, आदि आदि प्रभु पदधूलि घूसरित भूमियों का संस्पर्श प्रत्येक बार नित्यनूतन दर्शन कराता रहा, अभिनव अनुभूतियों को जगाता रहा, प्रभु महावीर के अंत: स्वरूप में प्रवेश कराता रहा, नितनये चेतना - संचार कराता रहा । इन बाह्यांतर दोनों प्रकार की यात्राओं से मेरे अंतर्र्लोक में महाध्यानी महावीर का एक अभूतपूर्व विराट, विरल स्वरूप संस्थापित होता रहा । इन अंतरानुभवों की अभिव्यक्ति असम्भव

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