Book Title: Anekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 14
________________ भारत में वर्णनात्मक कथा-साहित्य दूमरे स्कन्ध में पुण्यों की कथाएं हैं। पहली कथा धर्मात्मा समूह की है जिसने भिक्षुक सुदत्त को प्रामुक विपुल ग्राहार दिया था और उसके फल स्वरूप उसका भव-भ्रमण बहुत ही घट गया। एक भवान्तर मे वह विपुल धन-वैभववाला सुदा राजकुमार के रूप मे जन्मा। उसने महावीर से व्रत प्रगीकार किए। यथाकाले वह अंगों का अध्ययन करेगा खूब तपस्या के अनन्तर मृत्यु प्राप्त कर स्वर्ग में जाएगा और यथाकाल मुक्ति प्राप्त करेगा। शेष पुण्य कथाए नाम, ठाम फेर के सिवा इस सुबाहु जैसी ही है। इन कथाओं की उपदेशिक ध्वनि बिल्कुल स्पष्ट है । साधु साध्वियों, श्रावक और श्राविकानों, चारो को धर्माचरण की शिक्षा देना ही इनका लक्ष्य है । पूर्व और उत्तर भवों की कथाए एव जन्म-जन्मातरण के दुखो का चित्र मास्तिकों को धर्म मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। यदि कभी किसी से भूल हो भी जाए तो भी उसके लिए भविष्य उज्ज्वल है, यही विश्वास रखते हुए महावीर जैसे धर्मोपदेष्टाओं के बताए मार्ग का अनुसरण करते रहना चाहिए । इस भव और उत्तर भवो के सभी दुखों की समोष घोषधि वैराग्य ही है जिन पापों का इन कहा नियों में उल्लेख किया गया है और जिन व्यवसायों की निन्दा की गई है, वे हमारे समक्ष ऐसी संहिता का चित्र प्रस्तुत कर देते हैं कि जिसका जैनधर्म ने सदा ही प्राग्रह किया है। उत्तराध्ययन के कतिपय भाख्यानों में भी वैराग्य भावना को जोरदार काव्यमयो भाषा में प्रेरित किया गया है। राजा नेमि [ धध्या० ९] उनकी बढा की परीक्षा करने को भाए ब्राह्मण रूप में इन्द्र के सभी तकों का उचित उत्तर देकर, प्रव्रज्या स्वीकार करते हैं। हरिकेशी की जीवनी में यज्ञ परम्परा का खण्डन किया गया है घोर संगम एवम् परिषह-सहन का बड़ा ही महात्म्य बताया गया है. [ धध्या ११] चित्र और सम्भूति [ प्रध्या० ११ १३] का संवाद ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती सम्बन्धी कथाओं के महान् चक्र का ही एक अंश है और यह जैन, बौद्ध एवं हिन्दू पुराणों में भी समान रूप से पाया जाता है"। राजा ब्रह्मदत्त नरक में जाता है जब कि साधू चित्र मोक्ष प्राप्त कर लेता है। इससे भी वैराग्य की महानता ही प्रकट होती है। उयारिजं [इपुकारीय] अध्याय मे भिक्षु जीवन के महत्व का इस दृढता के साथ समर्थन किया गया है कि उसके फल स्वरूप राजा-राणी सहित अन्य अनेक जन भी घर सम्पत्ति त्याग भिक्षु भिक्षुणी हो जाते है [अध्या०] [१४] विवाह भोज के लिए लाए हुए पशुओं की चीत्कार सुन कर अरिष्टनेमि प्रव्रजित हो जाते है । उनके प्रति परम श्रद्धा राजीमति की भी भिक्षुणी बना देती है। फिर रथनेमि की सयम शिथिल-वृत्ति को मर्मभेदी उपदेश से दूर कर वह उसको संयम मे स्थिर करती है एवम् सभी घोर तपश्चर्या के पश्चात् उसी भव में मोक्ष लाभ करते हैं [अध्या० २२] में इस घटना का वर्णन बड़ी सुन्दरता से किया गया है और वह वर्णन वंशम्य का एक चमत्कारी काव्य ही है। सजयइज्ज [ प्रध्या० १८] को अध्याय में प्राचीन जैन वैराग्य वीरों की जीवनियों की पूंजी का कुछ-कुछ प्राभास मिल जाता है। इन प्रख्यात व्यक्तियों में से कुछ के नाम तो हमें अन्य ग्रन्थों द्वारा भी ज्ञात होते हैं। इस सूची में १२ चक्रवर्ती, चार प्रत्येक बुद्ध और उदयन, काशीराज, विजय और महाबल जैसे राजों के नाम भी हैं। मियापुत्र [ मध्या० १६] की जीवनी जैसी जीवनियाँ शास्त्रकारों को उपदेशिक शिक्षा, धार्मिक अनुरोष भौर सिद्धान्त व्याख्या के अनेक अवसर प्रदान कर देती है । (क्रमशः) ११. देखो बार पेटियर का इन्डो १० ४४ आदि और टिप्पण पृ० ३२० प्रादि उनके उत्तराध्ययन ग्रन्थ का उप्पासला, १६२२ ।

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