Book Title: Anekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 12
________________ भारत में वर्णनात्मक कथा-साहित्य लाड-दुलार करने लगी। फलतः उसे भिक्षुणी संघ से गए और मरने पर वह मृगापुत्र रूप से महान घृण्य शरीर बाहर कर दिया गया। फिर भी वह भिक्षुणी रहती हुई वाला जन्मा। पशुओं, पक्षियों मादि के अनेक भव करने बच्चों को उसी प्रकार लाड-प्यार करती ही रही। इसके के पश्चात् यह मृगापुत्र का जीव एक धनी सार्थवाह का फलस्वरूप वह मरणोत्तर बहुपुत्रिका देवी रूप में जन्म जन्म लेगा और उस भव में वह जैन व्रतों को अगीकार पाई। इस भव के अनन्तर उसने सोमा रूप से जन्म पाया करेगा एवम् मुनि जीवन बिता कर स्वर्ग मे जाएगा। जहाँ उसका विवाह राष्ट्रकूट ब्राह्मण से हुआ । उससे उसे कालक्रमे वह सिद्ध. बुद्ध और मुक्त होगा। दूसरी कथा १६ युग्म संताने १६ वर्ष के वैवाहिक जीवन मे ही हो बधिक भीम की है जो अपनी स्त्री के गर्भावस्था में हुए गई। इसलिए इस जीवन से उसे घृणा हो गई और वह मास-मदिरा खान-पान के दोहद को पूरा करने के लिए फिर जैन भिक्षुणी बन गई। यथाकाले वह मोक्ष लाभ अनेक जीवों की हत्या करता है। वह स्त्री यथा समय करेगी। पुप्फचुला में उन नारियो के चरित्र है जो पुप्फ- गोट्टासय नाम के एक पुत्र को जन्म देती है और जैसेचूला गुरणी की प्राज्ञाकारी शिष्याएं रही थी और उन्हें जैसे वह बड़ा हाता है मांस-मदिरा का अधिकाधिक शौकीन देवलोक प्राप्त हुआ। उदाहरणार्थ भूता पार्श्वनाथ की ही होता जाता है। यहां से मर कर वह उज्झितक न म से शिष्या थी और उन्होंने उसे भिक्षुणी-दीक्षा दी थी। परन्तु एक सेठ के घर में पुत्र रूप से जन्मता है। परन्तु वह प्रत्येक वस्तु पानी से घोन का भिक्षुणी प्राचार के विरुद्ध कुलागार ही निकलता है। द्यत, वेश्या, मद्य, प्रादि सभी इसका स्वभाव था । परिणामस्वरूप वह देवलोक तक ही व्यसन उसमे है। व्यभिचार दोष के दण्ड स्वरूप राजा पहुँच सकी और अब महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर बह उसे सूली का दण्ड दे देता है। मर कर वह नरकादि अनेक सिद्ध, बुद्ध और मुक्त यथाकाल होगी। वन्हिदसाग्रो मे नीच योनियां भगतता हा सार्थवाह होता है और उस १२ वृष्णि राजकुमारों की कथाएँ है जो कि बलदेव के जीवन मे किये सत्कर्मों और सद्धर्म के प्रभाव से वह स्वर्ग पुत्र थे। गजकमार निषध, नेमिनाथ के शिष्य, ने जो में देव होगा और यथाकाले मोक्ष प्राप्त करेगा। तीसरी उन्नति की उसकी कथा उसके पूर्वभवो की कथाओं के कया निन्नय नाम के एक ऋर अण्डों के व्यापारी की है उल्लेख पूर्वक उसमें कही गई है । जब वीरागद राजकुमार और वह तरह तरह के अण्डे लाता और बेचता है। इस के भव म उसने पूरे ४५ वर्ष तक घोर तपस्या की तो पाप से वह मर कर नरक में जाता है और वहाँ से उसके परिणास स्वरूप पहले वह देवलोक मे देव हुआ निकल कर प्रभग्गसेन रूप से जन्म पाता है। यह प्रभग्ग और उसके बाद निषध राजकुमार । उत्तरभव मे वह एक सेन एक बड़ा ऋर लुटेरा है। पासपास के सब क्षेत्र भिक्ष होगा और वही से वह देवलोक मे देव । तदनन्तर उसके भय से त्रस्त और दुम्बी होते हैं । राजा महाबल यह वह यथाकाल सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो जाएगा। जान कर कि अभग्गसेन पर किसी प्रकार का काबू नहीं विवागसूयम्, जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता पाया जा रहा है. उसे अपने यहाँ भोजन का निमन्त्रण है, में बुरे और भले कर्मों के बुरे एवं भले परिणामों की देता है और उस निमन्त्रण को स्वीकार कर जब वह दृष्टातिक कथाएँ दी गई है। पहले स्कन्ध में बुरे कर्मों भोजन के लिए राजमहल मे पाता है तो राजा सारे नगर के बुरे परिणामों की दस दृष्टातिक कथाएं है। दूसरे द्वार बन्द करवा कर उसको फासी देने की प्राज्ञा निकाल स्कन्ध मे अच्छे कर्मों के अच्छे परिणाम बतानेवाली पूर्ण देता है और वह फांसी पर चढ़ा दिया जाता है। यह विवरण सहित कथा तो एक ही है और शेष यथावत् प्रभग्ग संसार में भ्रमण करता करता एक बार फिर मनुष्य कही जानेवाली है। इकाई सुबेदार बड़ा ही निर्दय स्व. जीवन प्राप्त करेगा और तब वह दीक्षा लेगा, एवम् यथा भाव का था और वह लोगों पर बहुत बड़े और भारी काले मोक्ष प्राप्त कर लेगा। चौथी कथा धणिय, मांस भारी कर डाल कर खूब ही सताया करता था। इस दुष्प्र. व्यापारी की है जो रोज बहुत से पशु मारा करता और वृत्ति के कारण उसके शरीर में अनेक प्रकार के रोग हो उनके मांस के पकवान बना कर स्वयं खाता और दूसरों

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