Book Title: Aise Kya Pap Kiye
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 29
________________ ऐसे क्या पाप किए! आध्यात्मिक पंच सकार : सुखी होने का सूत्र भवरोग निवारण रामबाण औषधि : पंच सकार उपादय उपादेय २. हेय-ज्ञेय-उपादेय के बोले में - १. संयोग मात्र ज्ञेय है। २. संयोगीभाव हेय हैं। ३. स्वभाव सर्वथा उपादेय हैं। ४. स्वभाव के साधन एकदेश उपादेय हैं। ५. सिद्धत्व सर्वदेश (पूर्ण) उपादेय हैं। ३. चार काल के बोल में - १. संयोग अनादि अनन्त हैं, किन्तु उनसे कुछ भी सम्बन्ध नहीं है। २. संयोगीभाव सादि-सान्त हैं, अतः वे क्षणिक-नाशवान हैं। ३. स्वभाव अनादि-अनन्त हैं। ४. स्वभाव के साधन सादि-सान्त हैं। ५. सिद्धत्व सादि-अनन्त है। ४. पाँचभाव के बोल में - १. संयोग पाँच भावों में कोई भाव नहीं है। २. संयोगीभाव औदयिकभाव है। ३. स्वभाव पारिणामिकभाव है। ४. स्वभाव के साधन औपशमिक, क्षायोपशमिक क्षायिकभाव हैं। ५. सिद्धत्व क्षायिक भाव हैं ५. साततत्त्वों के बोल में - १.संयोग अजीव है। २. संयोगीभाव आस्रव-बन्धतत्त्व हैं। ३. स्वभाव जीव है। ४. स्वभाव के साधन संवर-निर्जरा तत्त्व हैं। ५. सिद्धत्व मोक्ष तत्त्व है। नोट - इस विस्तृत लेख को सारांश में समझने व स्मरण रखने के लिए संलग्न चार्ट का अवलोकन करें। (कृपया पन्ना पलटें) पंच सकार → संयोग |संयोगी भाव | स्वभाव | स्वभाव के | सिद्धत्व में इन्हें घटित । (परद्रव्य | (रागादि (त्रिकाली ध्रुव | साधन (एकदेश | (पूर्ण अविकारी कीजिये सारा जगत) |विकारीभाव) जीव तत्त्व) अविकारी पर्याय) दशा निर्मल पर्याय १. दो बोल • सुखदायक या न सुखदायक सुखदायक सुखदायक सुखदायक ..दुःखदायक न दुःखदायक | दुःखदायक २. तीन बोल ..हेय हेय •ज्ञेय • उपादेय उपादेय ३. चार काल •सादि-सांत - सादि-सांत सादि-सांत • अनादि-अनंत अनादि-अनंत एक समय की अनादि-अनंत •सादि-अनंत पर्याय होने से सादि-अनंत • अनादि-सांत | - संतति अपेक्षा अनादि-सांत) ४. पाँच भाव उपशम उपशम भाव • क्षय क्षायिक भाव | क्षायिकभाव •क्षयोपशम कोई भाव नहीं - क्षयोपशम भाव औदयिक औदयिक भाव • पारिणामिक पारिणा.भाव सात तत्त्व •जीव जीव तत्त्व अजीव अजीव तत्त्व • आसव आसव बंध संवर •निर्जरा • मोक्ष संवर तत्त्व निर्जरा तत्त्व मोक्ष तत्त्व उपर्युक्त पाँच-पाँच बोलों को इसप्रकार घटित करने पर निष्कर्ष के रूप में निम्नलिखित पाँच महान सिद्धान्त निकलते हैं - (29)

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