Book Title: Aise Kya Pap Kiye
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 110
________________ ऐसे क्या पाप किए ! हमने स्वामीजी को नजदीक से देखा है, परखा है और उनके प्रवचनों को तथा अनुभवों को सुना है। हमें विश्वास है कि वे दिगम्बर जिनागम के कट्टर श्रद्धानी हैं। . स्वामीजी प्रतिज्ञारूप प्रतिमा आदि नहीं पालते तथापि उनके आचरण खान-पान आदि किसी प्रतिमाधारी से कम नहीं हैं। उत्तम आचरण, मर्यादित खानपान, आजीवन ब्रह्मचर्य, मन्दकषाय आदि उनके गुण उनमें और उनके शिष्यों में पाये जाते हैं। " २१८ भारतवर्षीय विद्वत्परिषद् के मन्त्री श्री पन्नालालजी साहित्याचार्य, सागर ने लिखा है - " श्री कानजी स्वामी युग पुरुष हैं, उन्होंने दिगम्बर जैन धर्म के प्रभाव का महान् कार्य किया है। उनके इस जीवन-निर्माण में समयसार का अद्भुत प्रभाव है। इसमें निबद्ध कुन्दकुन्द स्वामी की विशुद्ध अध्यात्म देशना ने अगणित प्राणियों का उपकार किया है। उनके इस कार्य से सौराष्ट्र प्रान्त ही जागृत हुआ हो सो बात नहीं, भारतवर्ष के समस्त प्रदेश जागृत हुए हैं और स्वाध्याय के प्रति निष्ठा का भाव उत्पन्न कर आत्मकल्याण की ओर लग रहे हैं। " डॉ. दरबारीलालजी कोठिया अध्यक्ष, अखिल भा. दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद् ने लिखा है- “श्री कानजी स्वामी ने दिगम्बर समाज में तत्त्वज्ञान की दिशा में निश्चय ही जागरण किया है। समयसार एक ऐसा ग्रन्थरत्न है, जिसकी ओर आत्मगवेषी मुमुक्षु का ध्यान जाना स्वाभाविक है। स्वामीजी इस समयसार से प्रभावित होकर दिगम्बर परम्परा में आये और उन्होंने समयसार के अध्ययन, मनन व चिन्तन और सतत् स्वाध्याय पर बल दिया।' १. कानजी स्वामी अभिनंदन ग्रंथ, पृष्ठ ८ २. सन्मति सन्देश, वर्ष ७, अंक ५, पृष्ठ ३ ३. आगमपथ, मई १९७६ (110) बीसवीं सदी का सर्वाधिक चर्चित व्यक्तित्व सुप्रसिद्ध सैद्धान्तिक विद्वान् पंडित फूलचन्द्रजी सिद्धान्ताचार्य, वाराणसी के शब्दों में :- "कोई कुछ भी क्यों न कहे, मैं तो कहता हूँ कि वर्तमान में श्री कानजी स्वामी का उदय दिगम्बर परम्परा के लिए अभ्युदयरूप है। जिसके जीवन में दिगम्बर परम्परा का माहात्म्य समाया हुआ है वह श्री कानजी स्वामी और समग्र सौराष्ट्र को आदर की दृष्टि से देखे बिना नहीं रह सकता। " २१९ समाज के मूर्धन्य विद्वान् पंडित कैलाशचन्द्रजी, सिद्धान्ताचार्य, वाराणसी लिखते हैं: “आज से पचास वर्ष पूर्व कुन्दकुन्द का नाम मात्र तो लिया जाता था, किन्तु समयसार आदि अध्यात्म की चर्चा करने वाले अत्यन्त विरल थे । व्यवहार को ही यथार्थ धर्म और पुण्य को ही मोक्षमार्ग कहा जाता था। उन्होंने अपनी शैली के विद्वान् प्रवक्ता तैयार किये । कुन्दकुन्दाचार्य के ग्रन्थों का सुन्दर और सस्ता प्रकाशन किया। वीतराग-विज्ञान पाठशालाएँ खोलीं, परीक्षालय चलाया। शिक्षण शिविर की प्रणाली चलाई। समाज के सर्वमान्य नेता साहू शान्तिप्रसादजी जैन ने निम्नलिखित उद्गार व्यक्त किये हैं :- “स्वामीजी ने वीतराग धर्म का प्रचार-प्रसार करके जैन धर्म व समाज का बहुत बड़ा उपकार किया है। वास्तव में सम्यग्दर्शन- ज्ञान व चारित्रधर्म की पुनर्स्थापना में उनका बहुमूल्य स्थान रहा है, जिसका जैन समाज सदैव ऋणी रहेगा । २" भा. दि. जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी, बम्बई के अध्यक्ष सेठ लालचन्द हीराचन्द लिखते हैं: “संत श्री कानजी स्वामी ने जैन समाज में नई जागृति और नव चैतन्य का निर्माण किया है। समाज में फैली हुई अनुचित रूढ़ियों और अन्य प्रकार विशेषता मिथ्या तत्त्वज्ञान के बारे में आपका १. खानिया तत्वचर्चा, भाग-१, पृष्ठ १९ २. आगमपथ, मई १९७६

Loading...

Page Navigation
1 ... 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142