Book Title: Aise Kya Pap Kiye
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 118
________________ २३४ ऐसे क्या पाप किए ! प्रक्षाल - पूजन और प्रवचन के नियम का निर्वाह बराबर करता था; भले दो-चार श्रोता ही क्यों न हों; पर वह प्रवचन करता अवश्य था; क्योंकि प्रवचन भी उसके मान-पोषण का एक साधन था। मौका मिलते ही वह उस अभिमान के भाव को व्यक्त किये बिना भी नहीं रहता था। वह कहता - “भैया ! क्या बताऊँ समाज की दशा ! यदि मैं प्रक्षाल, पूजा और (प्रवचन) न करूँ तो विचारे भगवान दो-दो बजे तक बिना प्रक्षाल - पूजा के ही बैठे रहेंगे; क्योंकि साप्ताहिक बारीवालों का तो कोई ठिकाना ही नहीं। उन्हें तो जब टाइम मिलेगा, तब आयेंगे और वेगार जैसी टाल कर चले जायेंगे। एक मैं ही हूँ, जो सबेरे समय पर प्रक्षाल - पूजा हो जाती है। यदा-कदा जब मैं नहीं होता, बाहर चला जाता, तब ऐसा ही होता है। मनुष्य तीन श्रेणी के होते हैं - १. उत्तम २. मध्यम और ३. अधम । "उत्तम मनुष्य वह है, जो दूसरों की गलती का दुष्परिणाम देखकर स्वयं सावधान हो जाय । मध्यम पुरुष वह है जो एक बार गलती का दण्ड भुगतकर पुनः गलती न करे तथा अधम पुरुष वह है, जो गलती पर गलती करता रहे; गलतियों का दण्ड भुगतता रहे; फिर भी सुधरे नहीं, चेते नहीं ।" सेठ जिनदत्त तीसरी श्रेणी का व्यक्ति था। क्या आप जानते हैं कि कुत्ते एक गुण और तीन दुर्गुण होते हैं। यद्यपि कुत्ता स्वामीभक्त होता है, यह उसका अद्वितीय गुण है। कुत्ते जैसा स्वामी भक्त कोई नहीं होता; पर उसमें तीन दुर्गुण भी होते हैं - प्रथम कुत्ता जबतक पिटता है, तभीतक काईं काईं करता है, T f प ट न बंद होते ही फिर वही गलती करता है, जिसके कारण वह अभी-अभी पिटा है। द्वितीय - कुत्ते की पूँछ १२ वर्ष तक भी पुंगी में क्यों न डाली जाये, जब भी निकलेगी टेढ़ी ही निकलेगी। तृतीय - कुत्ते में एक कमी यह भी होती है कि वह बिना प्रयोजन भी भौंकता रहता है और दूसरे कुत्तों को देखकर तो वह जरूर ही भौंकता है। १. मजबूरी में अरुचिपूर्वक किया गया काम (118) मान से मुक्ति की ओर २३५ ये तीनों दुर्गुण सेठ जिनचन्द्र में भी थे । वह जिनुआ से जिनचन्द्र बनते ही जिनुआ की अवस्था में हुई दुर्दशा को भूल गया था और फिर उन्हीं गलतियों को करने लगा, जिनके कारण उसने लम्बे (दीर्घ) काल तक दरिद्रता का दुख भोगा था। पैसा बढ़ते ही पुनः अभिमान के शिखर पर चढ़ गया; जबकि वह स्वयं पूजन में प्रतिदिन बोला करता था कि " मान महाविषरूप करहि नीचगति जगत में । म सुधा अनूप सुख पावै प्रानी सदा ।। फिर भी वह अपनी आदत से मजबूर था। - फुरसत के समय घर के बाहर द्वार के सामनेवाले चबूतरे पर आकर बैठ जाता। अपने बड़बोले स्वभाव और बिना प्रयोजन अधिक बोलने की आदत से वह कुछ न कुछ बोलता ही रहता। उसे बैठा देख कुछ चाटुकार खुशामदी प्रकृति के ठलुआ भैया भी आ बैठते; क्योंकि एक तो उन्हें कुछ काम नहीं होता। दूसरे, सेठ के साथ बैठकर उनका भी समय पास हो जाता। तीसरे, उन्हें सेठ को राजी रखकर अपना उल्लू सीधा करने का मौका मिलता। अतः वे सेठ की झूठी / सच्ची बातों की हाँ में हाँ मिलाया करते और सेठ के साथ नकली हँसी हँसा करते । मेरा घर पास में ही था, उनकी ठहाकों की आवाज सुनकर मेरा मन भी उनकी खट्टी-मीठी बातें सुनने को मचलने लगता । मुझे भी घर में अकेले बैठे रहना अच्छा नहीं लगता, इसकारण मैं भी उनकी महफिल में शामिल होकर मूकदर्शक बना उनकी बातों से अपना मनोरंजन करता रहता । बैठे हुए व्यक्तियों पर रौब जमाने हेतु सेठ जिनचन्द्र स्वयं के नकली बड़प्पन को प्रदर्शित करने और दूसरों की दरिद्रता व हीनता - दीनता को दर्शाते हुए, उजागर करते हुए कहने लगता - “वे इन्दौरवाले बड़े धन्ना सेठ बने बैठे हैं, उस पंचकल्याणक में बड़ी शान से मेरे आमने-सामने सौधर्म इन्द्र की बोली लगाने खड़े हो गये। मैंने सीधे पचास हजार बोले तो उन्होंने आव देखा न ताव, सीना ताने मेरी बोली पर सीधे पाँच-पाँच हजार बढ़ाने लगे।

Loading...

Page Navigation
1 ... 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142