Book Title: Aise Kya Pap Kiye
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 141
________________ ऐसे क्या पाप किए! "हुइहै वही जो राम रचि राखा' यदि वह मुस्लिम है, तो सोचता है - "खुदा की मर्जी के बिना पत्ता नहीं हिलता" यदि वह जैन है तो कहता है"जो जो देखी वीतराग ने, सो-सो होती वीरा रे", आदि। इसी प्रकार सभी धर्म अपने आराध्य देव को सर्वज्ञ और समदर्शी मानते हैं। ये आराध्यदेव मानव को सत्कार्य करने की ही प्रेरणा देते दिखते “यथा हि मलिनैः वस्त्रैः, यत्र तत्रौपविश्यते। एवं चनित वृत्तस्तु, वृत्तसं न रक्षति ।।" अतः शालाओं में चरित्र-निर्माण की ओर विशेष ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है। (सन् १९७८ में इन्टर कॉलेज की वार्षिक पत्रिका 'चेतना' का सम्पादकीय) चरित्रवान व्यक्ति स्वाभिमानी और स्वावलंबी होते हैं। उनका आत्म गौरव बढ़ा-चढ़ा होता है। यह स्वाभिमान और आत्म गौरव भी मानव को पापाचरण से रोकता है। इन सबका परस्पर बड़ा घनिष्ट सम्बन्ध है। जो स्वाभिमानी है, वह लोभी नहीं हो सकता, जो लोभी है वह स्वाभिमानी नहीं हो सकता। आदि......... ये सभी गुण अभ्यास से प्राप्त होते हैं। बाल्यावस्था चरित्र-निर्माण के लिए सबसे अधिक उपयुक्त समय है। इस समय जो सद्विचार बन जाते हैं, वे कभी नहीं भूलते। बचपन में सीखा हुआ तैरना मनुष्य जीवन भर नहीं भूलता! यदि अपना जीवन सफल करना है, सार्थक बनाना है तो हमें अपने चरित्र का निर्माण करना होगा, तभी हम सुख और यश के पात्र बन सकेंगे। भारत का भविष्य भारत की होनहार भावी पीढ़ी पर ही निर्भर है। चरित्रवान व्यक्ति ही देश को उन्नति का पथ प्रदर्शित कर सकते हैं। चरित्रवान व्यक्ति देश के गौरव हैं और चरित्रहीन व्यक्ति देश के लिए कलंक हैं और वे दिन प्रतिदिन उसी प्रकार बिगड़ते जाते हैं, जिस प्रकार मेले कपड़े वाला मनुष्य हर कहीं मलिन स्नान पर बैठ जाता है। ठीक इसके विपरीत स्वच्छ वस्त्रधारी झाड़ फूंक कर बैठता है! कहा भी है - (141)

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