Book Title: Aise Kya Pap Kiye
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 67
________________ १३२ ऐसे क्या पाप किए ! प्रवृत्तियों को त्यागने की भावना भाते हुए सन्मार्ग में लगते हैं। दिल खोलकर चारों प्रकार का दान देते हैं। घर-घर में जिनवाणी पहुँचाने का कार्य दानदाताओं द्वारा किया जाता है। ___महीनों पहले से धार्मिक वातावरण बन जाता है। नवनिर्मित जिन मन्दिर हजारों वर्षों तक भव्यात्माओं के कुछ मोक्षमार्ग के निमित्त बनते हैं। देश में आतंकवाद, चोरी, डकैती, ठगी, दुराचार आदि की दुष्प्रवृत्तियाँ जो शासन के लिए सदैव सरदर्द बनी रहती हैं - उन पर भी इन धार्मिक भावनाओं के प्रचार-प्रसार से बहुत कुछ अंकुश लगता है - इसप्रकार ये महोत्सव देश की लौकिक समस्याओं को सुलझाने में भी साधन बनते हैं। सभी भव्य जीव इन आयोजनों से शतत् लाभ लेते रहें - इस मंगलभावना के साथ विराम । ॐ नमः परमात्मा बनने की प्रक्रिया जैनदर्शन अकर्त्तावादी दर्शन है। इसके अनुसार प्रत्येक आत्मा स्वभाव से स्वयं भगवान है और यदि जिनागम में बताये मार्ग पर चले, स्वयं को जाने, पहचाने और स्वयं में ही समा जावे तो प्रगट रूप से पर्याय में भी परमात्मा बन जाता है। जैनदर्शन के अनुसार परमात्मा बनने की प्रक्रिया पूर्णतः स्वावलम्बन पर आधारित है। किसी की कृपा से दुःखों से मुक्ति संभव नहीं है; अतः जैनदर्शन का भक्ति साहित्य अन्य दर्शनों के समान कर्त्तावाद का पोषक नहीं हो सकता। -जिनपूजन रहस्य, पृष्ठ-३९ परिग्रह को पाप मानने वालों के पास अधिक परिग्रह क्यों? एक नेताजी अपने भाषण में कह रहे थे कि “जो अपरिग्रह को ही सबसे बड़ा धर्म और परिग्रह को सबसे बड़ा पाप कहते हैं, उन्हीं के पास सबसे अधिक परिग्रह क्यों होता है ? समझ में नहीं आता उनमें यह विरोधाभास क्यों ? ये अपने परिग्रह पाप को कम क्यों नहीं करते ?" ___ संभव है उनका इशारा उन चन्द्र धन कुबेरों की ओर हो, जो चुनाव में चन्दा देने से आना-कानी करते हैं। पार्टियों को पर्याप्त चन्दा नहीं देते अथवा सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में धन खर्च नहीं करते । अस्तु; बात तो नेताजी की अच्छी ही थी। परिग्रहवाले पूंजीपतियों की समालोचना सुनकर सामान्य जनता भी खुश हो रही थी, अत: तालियाँ भी खूब बज रही थीं। संयोग से मैं उस सभा की अध्यक्षता कर रहा था। अत: अपनी बात कहने के साथ पूर्व वक्ताओं के प्रश्नों के उत्तर देना भी मेरा दायित्व था। अत: मैंने सर्वप्रथम नेताजी से यह निवेदन किया कि आपने जैनों के पास पैसा होने की बात तो कही; पर उनके पास पैसा क्यों होता है ? क्या इस पर भी कभी गौर किया ? वे मौन रहकर प्रश्नवाचक मुद्रा में मेरी ओर देखने लगे। मैंने कहा - सुनो ! पहली बात तो यह कि जैनी अधिकांश व्यापारी होते हैं और व्यापारे लक्ष्मी वसति' यह बात प्रसिद्ध है, इसलिए जैनों के पास पैसा होता है। दूसरी बात - जैनों को जन्मजात धर्म के संस्कार मिलने से प्रायः सप्त व्यसन के त्यागी होते हैं अतः शराब वे नहीं पीते, मांसाहार वे (67)

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