Book Title: Aise Kya Pap Kiye
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 91
________________ क्षत्रचूड़ामणि नीतियों और वैराग्य भावों से भरपूर कृति वादीभसिंहसूरि कृत क्षत्रचूड़ामणि कृति सरल संस्कृत भाषा एवं काव्य शैली में लिखी गई एक ऐसी नीति परक साहित्यिक रचना है, जिसके प्रत्येक श्लोक में कथानक के साथ-साथ पाठकों को कुछ न कुछ राजनैतिक, धार्मिक और सदाचार प्रेरक सन्देश भी दिया गया है। इस कृति के कथानायक तद्भव मोक्षगामी महाराजा जीवन्धरकुमार हैं, इसकारण इसका अपरनाम जीवन्धरचरित भी है। इसमें पाठकों को दिए गए सन्देश सामायिक, सटीक और सोदाहरण होने से अत्यन्त प्रभावी हो गए हैं। पुराण पुरुष कथानक के मूलनायक जीवन्धरकुमार के पिता महाराजा सत्यन्धर यद्यपि यथा नाम तथा गुणसम्पन्न, सदा सत्य बोलनेवाले, वृद्धों की सेवा करनेवाले, गूढ़ रहस्यों को समझने में निपुण, पुरुषार्थी, हठरहित, दूरदर्शी और विवेकी राजा थे; तथापि होनहार के अनुसार वे अपनी रानी विजया पर इतने अधिक मोहित और विषयासक्त हो गए थे कि उन्होंने अपने राज्य की सम्पूर्ण सत्ता मन्त्री काष्ठागार के भरोसे छोड़ दी, जो एक विवेकी राजा के लिए उचित नहीं था। इस दोष के कारण वे स्वयं तो राजसत्ता और प्राणों से हाथ धो ही बैठे, अपनी प्रिय रानी विजया और गर्भस्थ शिशु जीवन्धरकुमार को भी संकट में डालने का कारण बन गए। राजा सत्यन्धर के इस दोष की ओर संकेत करते हुए ग्रन्थकार ने पाठकों को यह सन्देश दिया है कि - विषयों में अधिक आसक्ति अनर्थ का कारण बनती है। पूज्य श्री कहते हैं - विषयासक्तचित्तानां गुण: कोवा न नश्यति । न वैदुष्यं न मानुष्यं नाभिजात्यं न सत्यवाक् ।।१०।। क्षत्रचूडामणि नीतियों और वैराग्यों से भरपूर कृति १८१ अर्थात् विषय-भोगों में लीन चित्तवाले मनुष्यों में ऐसा कौन-सा गुण है जो नष्ट नहीं हो जाता, सभी गुण नष्ट हो जाते हैं। उनमें विद्वत्ता , मानवता, कुलीनता, दूरदर्शिता, विवेक और सत्यवादिता आदि एक भी गुण नहीं रहता। कामुक मानव दीनता, निन्दा, तिरस्कार आदि की भी परवाह नहीं करता। उसे अपने भोजन-पान का विवेक और बड़प्पन की भी चिन्ता नहीं होती और तो ठीक - वह अपने जीवन की भी परवाह नहीं करता। ग्रन्थकार ने स्थान-स्थान पर ऐसे अगणित मार्मिक हृदयस्पर्शी सन्देश देकर पाठकों को ऐसा अनुकरणीय एवं आचरणीय सन्मार्ग-दर्शन किया है, जो स्तुत्य है। और भी देखें, जब राजा सत्यन्धर विजयारानी पर अत्यधिक मोहित होने के कारण योग्य ईमानदार धर्मदत्त जैसे हितैषी मन्त्रियों के परामर्श की परवाह न करके काष्ठांगार को राजसत्ता सौंप ही देते हैं तो अवसर पाकर ग्रन्थकार ने सम्यक् राजनीति का सन्देश देते हुए, उन्हीं योग्य मन्त्रियों के माध्यम से राजा के कर्तव्यों का भी बोध करा दिया है। ___इसी सन्दर्भ में ग्रन्थकार ने एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण सन्देश यह भी दिया है कि यदि भूल हो जाए तो आर्तध्यान का कारणभूत दुःख-शोक न करके इस सिद्धान्त का चिन्तन और विचार करना चाहिए कि बुद्धिः कर्मानुसारिणि अर्थात् जैसी होनहार होती है, तदनुसार ही बुद्धि हो जाती है। अन्यत्र भी यह कहा है - तादृशी जायते बुद्धिः व्यवसायोऽपि तादृशः। सहायाः तादृशः सन्ति यादृशी भवितव्यता ।। विजयारानी के द्वारा देखे गए स्वप्न और राजा सत्यन्धर के द्वारा बताए गए उन स्वप्नों के फलों के रूप में की गई भविष्यवाणी द्वारा भी १. प्रथमलम्ब : श्लोक १०, ११, १२ २. प्रथमलम्ब : श्लोक १५, १६ (91)

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