Book Title: Aise Kya Pap Kiye
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 95
________________ १८८ ऐसे क्या पाप किए ! करने से विपत्ति नष्ट नहीं होती, बल्कि यह तो विपत्तियों का ही बुलावा है, विपत्ति से बचने का उपाय निर्भयता है और निर्भयता तत्त्व-ज्ञानियों के ही होती है, अत: तुमको तत्त्वज्ञान प्राप्त करके निर्भय होना चाहिए। तत्त्वज्ञान से ही मनुष्यों को इसलोक व परलोक में सुखों की प्राप्ति होती है।"१ श्रीदत्त आगे कहता है कि - "तत्त्वज्ञान अर्थात् वस्तुस्वरूप की यथार्थ समझ एवं स्व-पर भेदविज्ञान और आत्मानुभूति होने पर दुःखोत्पत्ति की हेतुभूत बाह्यवस्तु भी वैराग्योत्पत्ति का कारण बनकर सुखदायक हो जाती है। श्रीदत्त आत्मसम्बोधन करते हुए अपने आप से कहता है कि - "हे आत्मन ! जिसप्रकार क्रोध लौकिक और पारलौकिक दोनों सुखों पर पानी फेर देता है, ठीक उसीप्रकार तृष्णारूपी अग्नि उभयलोक को नष्ट करनेवाली है।" यात्रा के दौरान सेठ श्रीदत्त गरुड़वेग राजा से मिला । राजा ने सेठ का समुचित सत्कार किया तथा अपनी गन्धर्वदत्ता पुत्री श्रीदत्त को सौंपते हुए कहा कि - इसके जन्मलग्न के समय ही ज्योतिषयों ने इसके विवाह की घोषणा की थी। अत: इसका योग मिलाने हेतु आप इसे राजपुरी ले जाएँ। इसप्रकार इस लम्ब में भी गन्धर्वदत्ता के वर के विषय में ज्योतिषी ने पहले ही घोषित कर दिया कि इस राजपुरी नगरी में जो कोई वीणा बजाने में इसे हराएगा, वही भूमिगोचरी इसका स्वामी होगा। वीणा बजाने में निपुण जीवन्धरकुमार ने वीणा बजाकर गन्धर्वदत्ता को जीत लिया, फलस्वरूप गन्धर्वदत्ता ने उनके गले में वरमाला डाल दी।" इस पूर्व निर्धारित घटना से भी वस्तस्वातन्त्र्य का सिद्धान्त फलित होता है। धर्मपराङ्गमुख, अधार्मिक, क्रूर व्यक्तियों की मानसिकता पर खेद प्रगट करते हुए ग्रन्थकार चौथै लम्ब (अध्याय) में यह कहते हैं कि - क्षत्रचूड़ामणि नीतियों और वैराग्य से भरपूर कृति "ऐसे व्यक्ति जब बिना कारण प्राणियों की हिंसा करने में नहीं हिचकते; यदि उन्हें झूठ-मूठ भी कोई कारण मिल जाए और मना करनेवाला कोई न हो, तब तो उनकी क्रूरता का कहना ही क्या है ? ऐसे ही कुछ क्रूर लोगों ने हवन सामग्री जूठी करने के कारण मात्र से कुत्ते को मार-मार कर अधमरा कर दिया। ___ वसन्तोत्सव की जलक्रीड़ा देखने नदी किनारे गए जीवन्धरकुमार ने वहाँ लोगों द्वारा उस मरणासन्न किए गए कुत्ते को देखा, उन्होंने उस मरणकालिक पीड़ा से छटपटाते हुए घायल कुत्ते को, पहले तो बचाने के अनेक प्रयत्न किए; परन्तु जब बचने की आशा नहीं रही तो मरण सुधारने हेतु उसके कान में णमोकार महामन्त्र सुनाया। णमोकार महामन्त्र को सुनकर मन्दकषाय से मरण के कारण वह कुत्ता यक्षेन्द्र हुआ। यक्षेन्द्र ने जन्म लेते ही अवधिज्ञान से अपने पूर्व भव की सारी घटना जानकर ज्ञात कर लिया कि जीवन्धरकुमार द्वारा दिए गए णमोकार मन्त्र के पुण्य प्रताप से ही मैं यक्ष हुआ हूँ। न हि कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति की उक्ति के अनुसार वह तत्काल जीवन्धरकुमार के पास आया और अपना सारा वृत्तान्त सुनाकर उनका परम उपकार मानते हुए बोला - "जब भी आपको मेरी सहायता की जरूरत हो मुझे, अवश्य स्मरण कीजिए" - बारम्बार यह निवेदन करके चला गया। उपर्युक्त घटना से पाठकों को पहला सन्देश तो यह मिलता है कि क्रूर, दुष्ट और अधार्मिक व्यक्तियों से सदैव दूर से ही हाथ जोड़ लेना चाहिए। उनके सम्पर्क में भी कभी नहीं रहना चाहिए। दूसरा सन्देश यह मिलता है कि दु:खी या सताए हुए जीवों की सुरक्षा एवं हर सम्भव सहायता करने में सदैव तत्पर रहना चाहिए। किया गया उपकार कभी निरर्थक नहीं जाता, भले ही हम नि:स्वार्थ भाव से ही करें, तथापि बुरे काम का बुरा नतीजा एवं भले काम का भला नतीजा तो मिलता ही है। १. तृतीयलम्ब : श्लोक १६, १७, १८ २. वही : श्लोक २१, २२, २३ (95)

Loading...

Page Navigation
1 ... 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142