Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 04
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ श्रीमत्प्रश्नव्याकरणदशाङ्ग-सूत्रम् :: अध्ययनं 3 ] [385 प्पहार-दूमण-निभच्छण-कडुय-बद(य)ण-भेसणग(गाभयाभिभूया, अक्खित्तनियंसणा, मलिण-दंडि-खंड-वसणा, उकोडा-लंच-पासमग्गण-परायणेहिं [ दुक्खसमुदीरणेहिं ] गोम्मियभडेहिं विविहेहिं बंधणेहिं, कि ते ? 2 / हडि निगड-वालरज्जुय-कुदंडग-वरत्त-लोहसंकल-हत्थु दुय-वजपट्ट-दामकणिकोडणेहिं अन्नेहि य एवमादिएहि गोम्मिक-भंडोवकरणेहिं दुवखस्यसमुदीरणेहिं संकोड मोडणाहिं बझति मंदपुन्ना, संपुड कवाड-लोहपंजरभूमिधर निरोह-कूव-चारग-कीलग-जूय-चक्क-विततबंधण-खंभालण-उद्ध चलणबंधण-विहम्माणाहि य विहेडयन्ता, 3 / अवकोडक-गाढ-उर-सिर-बद्ध-उद्धपरित(पुरीय)-अशुभ-परिणया य फुरंत-उर-कडग-मोडणामेडणाहिं बद्धा य नीससंता, सीसावेढ-उरुयाल(यावल)चप्पडग-संधिबंधण-तत्त-सलाग-सूइयाकोडणाणि तच्छण-विमाणणाणि य खार-कडुयतित्त-नावण-जायणा-कारणसयाणि बहुयाणि पावियंता, उरक्खोडीका-दिन-गाढपेलण-अट्टिक-संभग्ग-सुपांसुलिगा गल-कालक-लोहदंड--उर-उदर-बस्थि परिपीलिता, मच्छत-हियय-संचुरिणयंगमंगा, पाणती-किंकरहिं, केति अविराहिय-वेरिएहिं जमपुरिस-सन्निहिं पहया, 4 / ते तत्थ मंदपुराणा चडवेला-वजपट्ट-पाराइं-छिव-कस-लत्ता-वरत्तनेत्तप्पहार-सय-तालियंगमंगा, किवणा, लंबंत चम्मवण-वेयण-विमुहिय-मणा, घण-कोट्टिम-नियल-जुयल-संकोडिय-मोडिया य किरंति, निरुचारा असंचरणा एया अन्ना य एवमादीयो वेयणाश्रो पावा पावेंति 5 / अदंतिदिया वसट्टा बहुमोहमोहिया, परधणंमि लुद्धा, फासिदिय-विसय-तिब्वगिद्धा, इत्थि-गयरूव-सह-रस-गंध-इट्ठरति-महित-भोग-तराहाइया य धणतोसगा, गहिया य जे नरगणा 6 / पुणरवि ते कम्म-दुब्बियद्धा उवणीया रायकिंकराण तेसि वह-सत्थग-पाढयाणं, विलउली-कारकाणं, लंचसय-गेराहगाणं, कूड-कवडमाया-नियडि-शायरण-पणिहि-वंचण-विसारयाणं, बहुविह-श्रलिय-सत-. जपकाणं, परलोक-परम्मुहाणं. निरयगति-गामियाणं तेहि य प्राणत्त

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