Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 04
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 424 ) [श्रीमदागमसुधासिन्धुः / चतुर्थो विभागः गंधिएसु अन्नेसु य एवमादिसु गंधेसु मणुन्नभद्दएसु न तेसु समणेण सजियव्वं जाव न सतिं च मई च तत्थ कुजा, पुणरवि घाणिदिएण अग्घातिय गंधाणि श्रमणुन्न-पावकाई, किं ते ?, अहिमड-अस्समड-हत्थिमड-गोमडविग-सुणग-सियाल-मणुय-मजार-सीह-दीविय-मयकुहिय विणट्ठकिविण-बहुदुरभिगंधेसु अन्नेसु य एवमादिसु गंधेसु श्रमणुनपावएसु न तेसु समगोण रूसियव्वं न हीलियव्वं जाव पिहिय-घाणिदिय चरेज धम्मं 3, 15 / चउत्थं जिभिदिएण साइय रसाणि उ मणुन्नभद्दकाई, किं ते ?, उग्गाहिमविविहपाण-भोयण-गुलकय खंडकय तेल्ल-घयकयभक्खेसु बहुविहेसु लवणरससंजुत्तेसु महु-मंस बहुप्पगार--मजिय-निट्ठाणग-दालियंब-सेहंबदुद्ध-दहिसरयमज-वरवारुणी-सीहु-काविसायण-सायट्ठारस-बहुप्पगारेसु भोयणेसु य मणुन-वन्न-गंध-रस-फास-बहुदव्वसंभितेसु अन्नेसु य एवमादिएसु रसेसु मणुनभदएसु न तेसु समणेण सजियव्वं जाव न सइं च मतिं च तत्थ कुन्जा, पुणरवि जिभिदिएण सायिय रसातिं श्रमणुन्नपावगांई, किं ते ?, अरस-विरस-सीय-लुक्ख-णिजप्पि-पाणभोयणाई दोसीण-बावन्न-कुहियपूइय-श्रमणुन-विणट्ठपसूय-बहुदुन्भिगंधियाई तित्त-कडुय-कसाय-अंबिलरसलिंड-नीरसाइं अन्नेसु य एमातिएसु रसेसु श्रमणुनपावएसु न तेसु समणेण रूसियव्वं जाव चरेज धम्मं 4, 16 / पंचमगं पुण फासिदिएण फासिय फासाई मणुनभद्दकाई, किं ते ?, दग-मंडव-हीर-सेयचंदण-सीयलविमलजल-विविह-कुसुमसत्थर-घोसीरमुत्तिय-मुणालदोसिणा-पेहुण-उक्खेवगतालियंटवीयणग-जणिय-सुहसीयले य पवणे गिम्हकाले सुहफासाणि य बहूणि सयणाणि भासणाणि य पाउरणगुणे य सिसिरकाले अंगारपतावणा य श्रावय-निद्ध-मउय-सीय-उसिणलहुया य जे उउसुहफासा अंगसुहनिव्वुइकरा ते अन्नेसु य एवमादितेसु फासेसु मणुन्नभदएसु न तेसु- समणेण सजियव्वं न रजियव्वं, न गिझियव्वं, न मुझियव्वं, न विणिग्घायं

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