Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 04
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ भीमद्-विपाकसूत्रम् : श्रु० 1 : अध्ययनं 1] [465 य करपत्ताण य खुरपत्ताण य कलंबचीरपत्ताण य पुजा णिगरा चिट्ठति, तस्स णं दुजोहणस्स चारगपालस्स बहवे लोहखीलाण य कडि(कडग)सकराण य चम्मपट्टाण य अल्लपलाण(अन्ताण) य पुंजा निगरा चिट्ठति, तस्स णं दुजोहणस्स चारगपालस्स बहवे सूतीण य डंभणाण य कोट्टिलाण य पुजा निगरा चिट्ठति, 8 ।तस्स णं दुजोहणस्स चारगपालस्स बहवे पच्छा(सत्था)ण य पिप्पलाण य कूहाडाण य नहन्छेयणाण य दम्भतिणाण (दभाण) य पुजा निगरा चिट्ठति / / तते णं से दुजोहणे चारगपाले सीहरथस्स रन्नो बहवे चोरे य पारदारिए य गंठिभेदे य रायावकारी य अणधारए य बालघातए य विसंभघाते य जूतिकारे य सं(ख)डपट्टे य पुरिसेहिं गिराहावेति 2 त्ता उत्ताणए पाडेति 2 लोहदंडेणं मुहं विहाडेइ 2 अप्पेगतिए तत्ततंबं पज्जेति अप्पेगतिया तउयं पज्जेति अप्पेगतिए सीसगं पज्जेति अप्पेगतिए कलयं पज्जेति अप्पेगतिए खारतेल्लं पज्जेति अप्पेगइयाणं तेणं चेव श्रोवीलं (अभिसेयगं) करेति, अप्पेगतिए उत्ताणए पाडेति 2 श्रासमुत्तं पज्जेति अप्पेगतिए हत्थिमुत्तं पज्जेति जाव एलमुत्तं पज्जेति, अप्पेगतिए हेटामुहे पाडेति, छुड(ल)छड(ल)स्स वम्मावेति 2 अप्पेगतिए तेणं चेव ओवीलं दलयति अप्पेगतिए हत्थुडुयाई बंधावेति अप्पेगतिए पायंदुडियं(दुयाहिं) बंधावेति अप्पेगतिए हडिबंधणं करेति अप्पेगतिए नियड(ल)बंधणं करेति अप्पेगतिए संकोडियमोडिययं करेति अप्पेगतिए संकलबंधणं करेति अप्पेगतिए हत्यछिनए करेति जाव सत्थोवाडियं(यए) करेति अप्पेगतिए वेणुलयाहि य जाव वायरासीहि य पहरणातिहि य हणावेति अप्पेगतिए उत्ताणए कारवेति उरे सिलं दलावेति तो लउलं छुभावेइ 2 पुरिसेहिं उपकंपावेति अप्पेगतिए तंतीहि य जाव सुत्तरज्जूहि य हत्थेसु पाण्सु य बंधावेति अगडंसि श्रोचूलयालगं पज्जेति अप्पेगतिए असिपत्तेहि य जाव कलंबचीरपत्ते हि य पच्छावेति खारतेल्लेणं अभिगावेति अप्पेगतिए निलाडेसु य अवदूसु य

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