Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 04
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ श्रीमद्-विपाकसूत्रम् // श्रु० 1 अध्ययनं 1] करेमाणे गीवाए खुरं निवेसेहि तो णं अहं तुम्हें श्रद्धरजियं करेस्सामि तुम्हं अम्हेहिं सद्धिं उरालाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरिस्ससि, तते णं से चित्ते अलंकारिए नंदिसेणस्स कुमारस्स वयणं एयमट्ठ पडिसुणेति 5 / तए णं तस्स चित्तस्स अलंकारियस्स इमेयारूवे जाव समुपजित्था-जइ णं मम सिरिदामे राया एयमटुं श्रागमेति तते णं मम ण णजति केणति असुभेणं कुम(मा)रणेणं मारिस्सतित्तिकट्टु भीए जेणेव सिरिदामे राया तेणेव उवागच्छति 2 सिरिदामं रायं रहस्सियगं करयल जाव एवं वयासीएवं खलु सामी ! णंदिसेणे कुमारे रज्जे य जाव मुच्छिते इच्छति तुम्भे जीवियातो ववरोवित्ता सयमेव रजसिरिं कारेमाणे पालेमाणे विहरित्तए 6 / तते णं से सिरिदामे राया चित्तस्स अलंकारिपस्स अंतिए एयमटुं सोचा निसम्म प्रासुरुत्ते जाव साहटु णदिसेणं कुमारं पुरिसेहिं सद्धिं गिराहावेति 2 एएणं विहाणेणं वझ पाणवेति, तं एवं खलु गोयमा ! णंदिसेणे पुत्ते जाव विहरति 7 / नंदिसेणे कुमारे इत्रो चुए कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उबवजिहिइ ?, गोयमा ! णंदिसेणे कुमारे सर्टि वासाई परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए, संसारो तहेव, ततो हत्थिणारे णगरे मच्छत्ताए उववजिहिति, से णं तत्थ मच्छिएहि वधिए समाणे तत्थेव सेटिकुले बोहिं सोहम्मे कप्पे महाविदेहे वासे सिज्झिहिति बुझिहिति मुचिहिति परिनिविहिति सव्वदुक्खाणमंतं करेहिति, एवं खलु जंबू ! निक्खेवो छट्ठस्स अझयणस्स अयम? पन्नत्तेत्ति बेमि 8 // सू० 26 // छ?मज्झयणं समत्तं // // इति षष्ठमध्ययनम् // श्रु० १-अ० 6 //

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