Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 04
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ .470 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / चतुर्थो विभागा एवं एला-रोज्झ-सुयर-मिग-ससय-गो--महिसमंसाई अप्पेगतियाणं तित्तिरमंसाई अप्पेगतियाणं वट्टक-लावय-कपोत-कुक्कुड-मयूरमंसाइं अन्नेसिं च बहूणं जलयर-थलयर-खहयर-मादीणं मंसाइं उबदंसेति अप्पणाविय णं से धन्नंतरीविज्जे तेहिं बहूहिं मच्छमंसेहि य जाव मयूरमंसेहि य अन्नेहि य बहूहिं जलयर-थलयर-खहयर-मंमेहि य मच्छरसेहि य जाव मयूररसेहि य सोल्लेहि य तलेहि य भिज्जेहिं सुरं च 6 श्रासाएमाणे विसाएमाणे विहरति 7 / तते णं से धन्नंतरी विज्जे एयकम्मे सुबहुं पावं कर्म समजिणित्ता बत्तीसं वाससयाइं परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किचा छट्ठीए पुढवीए उक्कोसेणं बावीससागरोवमठिइएसु उववराणे 8 / तते णं सा गंगदत्ता भारिया जायणिंदुया यावि होत्था जाया जाया दारगा विनिघाय-मावज्जंति, तते णं तीसे गंगदत्ताए सत्थवाहीए अन्नया कयाई पुव्वरत्तावरत्त-कालसमयंसि कुडुबजागरियं जागरमाणीए अयं अभत्थिए जाव समुप्पन्ने-एवं खलु अहं सागरदत्तेणं सत्थवाहेणं सद्धिं बहूइं वासाई उरालाई मणुस्सगाई भोगभोगाइं भुजमाणी विहरामि, णो चेव णं अहं दारगं वा दारियं वा -पयामि, तं धराणायो णं तायो अम्मयायो सपुन्नायो कयत्थायो कयलक्खणाओ सुलद्धे णं तासिं अम्मयाणं माणुस्सए जम्मजीवियफले जासिं मन्ने नियग-कुच्छि-संभूयाई थणदुद्ध-लुद्धगाई महुरस-मुल्लावगाई मम्मणं पयंपियाइं थणमूल-कक्ख-देसभागं अभिसरमाणगाति मुद्धगाई पुणो य कोमल-कमलोवमेहि य हत्थेहिं गिराहेऊणं उच्छंगं निवेसियाति दिति समुल्लावए सुमहुरे पुणो 2 मंजुल-प्पभणिते, अहं णं अधन्ना अपुन्ना अकयपुन्ना एत्तो एगमवि न पत्ता, तं सेयं खलु मम कल्ले जाव जलंते सागरदत्तं सत्थवाहं श्रापुच्छित्ता सुबहुं पुप्फवत्थ-गंध-मल्लालंकारं गहाय बहुमित्तणाइ णियग-सयण-संबंधि-परिजन-महिलाहिं सद्धिं पाडलिसंडायो णगरायो पडिनिक्खमित्ता बहिया जेणेव उंबरदत्तस्स जवखस्स जक्खायतणे

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