Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 04
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 442
________________ श्रीमद्-विपाकसूत्रम् :: श्रु०१ : अध्ययनं 1 ) [ 421 भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी 2 विहरइ 4 // सू० 2 // तत्थ णं मियग्गामे णगरे एगे जातिअंधे पुरिसे परिवसइ, से णं एगेणं सचक्खुतेणं पुरिसेणं पुरयो दंडएणं पगढिजमाणे 2 फुट्टहडाहडसीसे मच्छिया-चडगर-पहकरेणं अरिणजमाणमग्गे मियग्गामे नयरे गेहे 2 यालुणवडियाए वित्तिं कप्पेमाणे विहरइ 1 / ते णं काले णं ते णं समए णं समणे भगवं महावीरे जाव समोसरिए जार परिसा निग्गया 2 / तए णं से विजए खत्तिए इमीसे कहाए लट्ठ समाणे जहा कोणिए तहा निग्गते जाव पज्जुवासइ 3 / तते णं से जातिअंधे पुरिसे तं महया जणसद्द जाव सुणेत्ता तं पुरिसं एवं वयासी-किन्नं देवाणुप्पिया। अज मियग्गामे णगरे इंदमहेइ वा जाव निग्गच्छइ ?, तते णं से पुरिसे तं जाति(य)अंधपुरिसं एवं वयासीनो खलु देवाणुप्पिया ! अज मियग्गामे नयरे इंदमहे वा जाव जत्ताइ वा जन्नं एए उग्गा जाव एगदिसि एगाभिमुहा णिग्गच्छंति, एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे जाव इह समागते इह संपत्ते इहेव मियगामे णगरे मिगवणुजाणे ग्रहापडिरूवं उग्गहं उग्गिरिहत्ता संजमेणां तवसा अप्पाणां भावेमाणे विहरति (इंदमहेइ वा जाव णिग्गब्छंति, एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे जाव विहरति.) तते णं एते जाव निग्गच्छति 4 / तते णं से अंधपुरिसे तं पुरिसं एवं वयासी-गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! अम्हेवि समगां भगवं जाव पज्जुवासामो, तते णं से जातिअंधे पुरिसे पुरतो दंडएगां पगद्विजमाणे 2 जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागए 2 त्ता तिवखुत्तो अायाहिणपयाहिणं करेइ 2 त्ता वंदति नमंसति 2 ता जाव पज्जुवासति 5 / तते णं समणे भगवं महावीरे विजयस्स रन्नो तीसे य महइमहालियाते परिसाए विवित्तं धम्ममाइक्खति जहा जीवा वझति, परिसा जार पडिगया, विजएवि गते 6 // सू० 3 // ते णं काले णं ते णं समएगां समणस्स भगवयो महावीरस्त जेठे अंतेवासी इंदभूतिनामं अणगारे जाव विहरइ 1 /

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