Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 04
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ [ 443 श्रीमद्-विपाकसूत्रम् :: श्रु० 1 : अध्ययनं 2] जाए यावि होत्था अहम्मिए जाव दुष्पडियागांदे 4 / तते णं से गोनासे दारए कूडग्गाहित्ताए कलाकलिं श्रद्धरत्तियकालसमयंसि एगे अबीए सन्नद्धबद्धकवए जाव गहिबाउहपहरणे सयातो गिहायो निग्गच्छति जेणेव गोमंडवे तेणेव उवागच्छति तेणेव उवागच्छित्ता बहगां गगरगोरुवाणां सणाहाण य जाव वियंगेति 2 जेणेव सए गिहे तेणेव उवागते 5 / तते णं से गोत्तासे कूडग्गाहे तेहिं बहूहिं गोमंसेहि य सूलेहि य जाव सुरं च मज्जं च पासाएमाणे विसाएमाणे जाव विहरति, तते णं से गोत्तासे कूडग्गाहे एयकम्मे (एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे) सुबहुं पावकम्म समजिणित्ता पंचवातसयाई परमाउयं पालइत्ता अट्टदुहट्टोवगए कालमासे कालं किच्चा दोचाए पुढवीए उकोसं तिसागरोवमठिइएसु नेरइएसु णेरइयत्ताए उबवन्ने 6 // सू० 10 // तते णं सा विजयमित्तस्स सत्थवाहस्स सुभद्दा नामं भारिया जायनिंदुया यावि होत्था, जाया जाया दारगा विणिहायमावज्जंति 1 / तते णं से गोत्तासे कूडग्गाहे दोचायो पुढवीयो श्रगांतरं उबट्टित्ता इहेववाणियगामे नगरे विजयमित्तस्स सस्थवाहस्स सुभदाए भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताएं उववन्ने 2 / तते णं सा सुभदा सत्यवाही अण्णया कयाई नवराहं मासागां बहुपडिपुन्नाणं दारगं पयाया, तते णं सा सुभद्दा सत्यवाही तं दारगं जायमेतयं चेव एगते उक्कुरुडियाए उज्मावेइ उज्मावेत्ता दोच्चंपि गिराहावेइ 2 ता श्राणुपुब्वेगां सारक्खमाणी संगोवेमाणी संवइदेति 3 / ततेणं तस्स दारगस्स अम्मापियरो ठिइवडियं चंदसूर-(पासणिय). दसणां च जागरियं च महया इड्डीसकार-समुदएणं करेंति, तते णं तरस दारगस्स अम्मापियरो इकारसमे दिवसे निव्वत्ते संपत्ते बारसमे दिवसे इममेयास्वं गोराणां गुणनिष्फन्नं नामधेन्जं करेंति, जम्हा णं अम्हं इमे दारए जायमित्तए चेव एगते उक्कुडियाए उज्झिते तम्हा णं होउ अम्हं दारए उज्झियए नामेगां 4 / तते णं से उझियए दारए पंचधातीपरिग्गहीए तंजहा-खीरधाईए

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