Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 04
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 15] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः // चतुर्थो विमागा चोरसेणावई कालमासे कालं किचा कहिंगच्छिहिति ? कहिं उववजिहिति?, गोयमा ! अभग्गसेणे चोरसेणावई सत्तत्तीसं वासाई परमाउयं पालइत्ता अज्जेव तिभागावसेसे दिवसे सूलभिन्ने कए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोससागरोवमट्टिईएसु नेरइएसु उववजिहिति, से णं ततो अणंतरं उबट्टित्ता एवं संसारो जहा पढमो जाव पुढवीए, ततो उव्वट्टित्ता वाणारसीए नयरीए सूयरत्ताए पञ्चायाहिति, से णं तत्थ सूयरिएहिं जीवियायो ववरोविए समाणे तत्थेव वाणारसीए नयरीए सेट्टिकुलंसि पुत्त(म)त्ताए पचायाहिति, से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे एवं जहा पढमे जाव अंतं काहिति 1 / निक्लेवो // सू० 11 // ततियं अज्झयगणां समत्तं // // इति तृतीयमध्ययनम् // श्रु० १--अ० 3 // // अथ शकटाख्यं चतुर्थमध्ययनम् // जइ णं भंते ! चउत्थस्स उक्लेवो, एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं साहजनीनामं नयरी होत्था रिद्धस्थिमियसमिद्धा, तोसे णं साहंजणीए बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए देवरमणे णामं उजाणे होत्था, तत्थ णं अमोहस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था पुराणे 1 / तत्थ णं साहंजणीए णयरीए महचंदे नामं राया होत्था महयाहिमवंत-महंत मलय-मंदर-महिंदसारे, तस्स णं महचंदस्स रन्नो सुसेणे नामं अमच्चे होत्था सामभेयदंड-उवप्पयाण-नीइ. सुपउत्त-नय-विहन्नू जाव निग्गहकुसले, तत्थ णं साहंजणीए नयरीए सुदंसणाणामं गणिया होत्था वन्नयो, तत्थ णं साहंजणीए नयरीए सुभद्दे नाम सत्थवाहे परिवसइ अढे जाव अपरिभूए, तस्स णं सुभदस्स सत्यवाहस्स भदानाम भारिया होत्था अहीण जाव सव्वंगसुंदरंगी, तस्स गां सुभद्दसत्थवाहस्स पुत्ते भद्दाए भारियाए अत्तए सगडे नामं दारए होत्था अहीण जाव

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