Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 04
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ * :: [ श्रीमदगिमसुधासिन्धुः / चतुर्थी विभागः एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमुदायारे सुबहुं पावकम्मं कलिकलुसं समजिणित्ता सत्तवाससयाई परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किंचा चोत्थीए पुढवीए उकोसेगां दससागरोवमठिईएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववन्ने 8 ॥मू० 20 // तते णं तस्स सुभद्दसत्थवाहस्स भद्दा भारिहा जाव निंदुया यावि होत्था, जाया जाया दारगा विनिहायमावज्जंति 1 / तते णं से छन्नीए छागले चोत्थीए पुढवीए अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव साहंजणीए नयरीए सुभहस्स सत्थवाहस्स भदाए भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववन्ने 2 / तते णं सा भद्दा सत्थवाही अन्नया कयाइं नवराहं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं दारगं पयाया, तए णं तं दारगं अम्मापियरो जायमेत्तं चेव सगडस्स हेट्ठातो ठावेंति दोच्चंपि गिराहावेंति अणुपुव्वेणं सारवखंति संगोवेंति संवड्डति जहा उझियए जाव जम्हा णं अम्हं इमे दारए जायमेत्ते चेव सगडस्स हेट्ठा ठाविए तम्हा णं होऊ णं अम्हं एस दारए सगडे नामेणं, सेसं जहा उझियते 3 / सुभद्दे लवणसमुद्दे कालगते मायावि कालगया, सेऽवि सयायो गिहायो निच्छुढे तते णं से सगडे दारए सयातो गिहायो निच्छूढे समाणे सिंघाडग तहेब जाव सुदरिसणाए गणियाए सद्धि संपलग्गे यावि होत्था 4 / तते णं से सुसेणे अमच्चे तं सगडं दारगं अन्नया कयाई सुदरिसणाए गणियाए गिहायो निच्छुभावेति 2 सुदंसणियं गणियं अभितरियं प्रवेति 2 सुदरिसणाए गणियाए सद्धिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरति 5 / तते णं से सगडे दारए सुदरिसणाए गिहायो निच्छूढे समाणे अन्नत्थ कत्थवि सुति वा अलभमाणे अन्नया कयाई रहसियं सुदरिसणागेहं अणुप्पविसइ 2 सुदरिसिणाए सद्धिं उरालाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरइ 6 / इमं च णं सुसेणे अमच्चे राहाते जाव विभूसिए मणुस्सवग्गुराए परिक्खित्ते जेणेव सुदरिसणा-गणियाए गेहे तेणेव उपागच्छति तेणेव उवागच्छइत्ता सगडं दारयं सुदंसणाए गणियाए सद्धि उरालाई

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