Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 04
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 459
________________ 446 [ श्रीमदागमसुभासिन्धुः :: चतुर्थो विभागः जाव पचणुभवमाणे विहरति 1 // सू० 12 // उज्झियए णं भंते ! दारए इयो कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिति ? कहिं उववजिहिति?, गोतमा ! उझियते दारए पणवीसं वासाइं परमाउयं पालइत्ता अज्जेव तिभागावसेसे दिवसे सूलीभिन्ने कए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयत्ताए उववजिहिति 1 / से णं ततो अगांतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड-गिरि-पायमूले वानरकुलंसि वाणरत्ताए उववजिहिति 2 / से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तिरियभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अमोववन्ने जाते वानरपेल्लए वहेहिति तं एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमुदायारे कालमासे कालं किचा इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इंदपुरे णगरे गणियाकुलंसि पुत्तत्ताए पचायाहिति 3 / तते णं तं दारयं अम्मापियरो जायमित्तकं वद्धेहिंति नपुसंगकम्म सिक्खावेहिंति, तते णं तस्स दारयस्स अम्मापियरो णिवत्तबारसाहस्स इमं एयारूवं णामधेज्ज करहिंति, तंजहा-होऊ णं पियसेणे णामं णपुसए, तते णं से पियसेणे णपुंसए उम्मुक्कबालभावे जोव्वणगमणुप्पत्ते विराणायपरिणयमित्ते स्वेण य जोवणेण य लावराणेण य उकिटे उकिटुसरीरे भविस्सइ 4 / तते णं से पियसेणे णसए इंदपुरे णगरे बहवे राईसर जाव पभिइयो बहूहि य विजापयोगेहि य मंतचुन्नेहि य हियउड्डावणेहि य काउड्डावणेहि य निराहवणेहि य पराहवणेहि य वसीकरणेहि य ग्राभियोगिएहि य अभियोगित्ता उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरिस्सति 5 / तते णं से पियसेणे णपुसए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमुदाचारे सुबहुं पावकम्मं समजिणित्ता एकवीसं वाससयं परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयत्ताए उववजिहिति 7 / ततो सिरिसिवेसु सुसुमारे संसारो तहेव जहा पढमो जाव पुढविकायेसु अणेग-सय-सहस्स-खुत्तो उद्दाइत्ता 2 तत्थेव भुजो 2 पञ्चायाइस्सति, से णं

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