Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 04
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 422 / ....श्रीमदागमसुधासिन्धुः / चतुर्थो विभागः सचित्ताचित्त-मीसकेहिं दव्वेहिं विराय गते, संचयातो विरए, मुत्ते, लहुके, निरवकंखे, जीविय-मरणास-विप्पमुक्के निस्संधं निव्वणं चरित्तं धीरे कारण फासयंते, अज्झप्पज्माणजुत्ते, निहुए, एगे चरेज धम्म 10 / इमं च अपरिग्गह-वेरमण-परिवखणट्टयाए पावयणं भगवया सुकहियं, अत्तहियं, पेचाभाविकं, आगमेसिभई, सुद्धं, नेयाउयं, अडिलं, अणुत्तरं, सव्वदुक्खपावाण वियोसमणं 11 / तस्स इमा पंच भावणायो चरिमस्स वयस्स होति परिग्गह-वेरमण-रक्खणट्टयाए-पढमं सोइंदिएण सोचा सहाई मणुन्नभदगाई, किं ते ?, वरमुरय-मुइंग-पणव-ददुर-कच्छभि-वीणा-विपंचीवल्लयि-बद्धीसक-सुघोस-नांद-सूसरपरिवादिणि-वंस-तूणक-पवक-तंतीतल-ताल-तुडिय-निग्घोसगीयवाइयाइं / नड-नट्टक-जल्ल-मल्ल-मुट्ठिकवेलंबक-कहक-पवक-लासग-याइक्सक-लंख-मंख-तृणइल-तुबवीणियतालायर-पकरणाणि य बहूणि महुरसरगीतसुस्सराति 12 / कंचीमेहला-कलाव-पत्तरक-पहेरक-पायजालग-घंटिय-खिखिणि-रयणोरुजा-- लिय-छुड्डिय--नेउर-चलणमालिय-कणगनियलजाल-भूसणसदाणि / लीलकम्ममाणाणूदीरियाई तरुणीजण-हसियभणिय-कल-रिभितमंजुलाई गुणवयणाणि व बहूणि महुरजणभासियाई अन्नेसु य एवमादिएसु सद्देसु मणुन्नभदएसु ण तेसु समणेण सजियब्वं, न रजियव्वं, न गिझियव्वं, न हसियव्वं, न मुज्झियव्वं, न विनिग्घायं, श्रावजियव्वं, न लुभियव्वं, न तुसियव्वं, न सई च मई च तत्थ कुज्जा, पुणरवि सोइंदिएण सोचा सदाई श्रमणुन्न-पावकाई, कि ते ?, अकोस-फरस-खिसण-अवमाणण-तजणनिभंछण-दित्तवयण-तासण-उक्कूजिय-रुन-रडिय-कंदिय-निग्घुटरसिय-कलुण-विलवियाई अन्नेसु य एवमादिएसु सद्देसु अमणुराण-पावएसु न तेसु समणेण रूसियव्वं, न हीलियम्वं, न निंदियध्वं, न खिसियव्वं, न छिदियव्वं, न भिंदियव्यं, न वहेयव्वं,न दुगुछावत्तियाए लब्भा उप्पाएउं, एवं

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