Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 04
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ श्रीमत्प्ररनश्याकरणदशाङ्ग-सूत्रम् / अध्ययनं 1 ] [117 भारत-मण-विरय-गामधम्मे जितिदिए बंभचेरगुत्ते 2, 10 / ततीयं नारीण हसित-भणितं चेट्ठिय-विप्पेक्खित-गइ-विलासकीलियं विब्बोतिय-नट्ट-गीतवातिय-सरीरसंगण-वन-करचरणा-नयणलावन्न-रूव-जोव्वण-पयोहराधर-वत्थालं. कारभूसणाणि य गुज्झोक्कासियाई अन्नाणि य एवमादियाई तवसंजमबंभचेर-घातोवघातियाई अणुचरमाणेणं बंभचेरं न चक्खुसा न मणसा न वयसा पत्थेयब्वाइं पावकम्माई / एवं इत्थीरूव-विरति-समितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा भारतमण-विरयगामधम्मे जिइंदिए बंभचेरगुत्ते 3, 11 / चउत्थं पुम्वरय-पुब्बकीलिय-पुव्वसंगंथ गंथसंथुया जे ते श्रावाह-विवाहचोलकेसु य तिथिसु जन्नेसु उस्सवेसु व सिंगारागार-चारुवेसाहिं हावभावपललिय-विक्खेव-विलास-(गति)सालिणीहिं अणुकूल-पेम्मिकाहिं सद्धिं अणुभूया सयणसंपयोगा उदुसुह-वरकुसुम-सुरभिचंदण-सुगंधिवरखास-धूवसुहफरिस-वत्थ-भूसणगुणोववेया रमणिज्जाउजगेय-पउरनड-नट्टक-जल-मल्लमुट्ठिक-वेलंग-कहग--पवग-लासग-बाइक्खग-लंख-मंख-तूणइल-तुबवीणिय-तालायर-पकरणाणि य बहूणि महुर-सर-गीत-सुस्सराइं अन्नाणि य एवमादियाणि तवसंजम-भचेर-घातोवघातियाई अणुचरमाणेणं बंभचेरं न तातिं समणेण लब्भा दट्ठन कहेउं नवि सुमरिउं जे, एवं पुव्वरयपुवकीलिय-विरति-समितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा पारयमणविरतगा. मधम्मे जिइंदिए बंभचेरगुत्ते 4, 12 / पंचमगं श्राहार-पणीय-निद्ध-भोयणविवजते संजते सुसाहू, ववगयखीर-दहि-सप्पि-नवनीय-तेल-गुल-खंड-मच्छडिकमहु-मज-मंस-खजक-विगति-परिचत्तकयाहारे णं दप्पणं, न बहुसो, न नितिकं, न सायसूपाहिकं, न खद्धं, तहा भोत्तव्वं जह से जायामाता य भवति, न य भवति विन्भमो, न भंसणा य धम्मस्स, एवं पणीयाहारविरति-समितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा भारतमण-विरतगामधम्मे जिइंदिए बंभचेरगुत्ते 5, 13 / एवमिणं संवरस्स दारं सम्मं संवरियं होइ

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