Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 04
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ श्रीमत्प्रनव्याकरणदशा-यम् / अध्मयने है ) [ 45 18, दाणाणं चेव अभयदाणं 11, किमिराउ चेव कंबलाणं 21, संघयणे चेव वजरिसभे 21, संठाणे चेव समचउरंसे 22, झाणेसु य परमसुक्कझाणं 23, णाणेसु य परमकेवलं तु सिद्धं 24, लेसासु य परमसुक्कलेस्मा 25, तित्थंकरे जहा व मुणीणं -26, वासेसु जहा महाविदेहे 27, गिरिसु गिरिराया चेव मंदरवरे 28, वणेसु जह नंदणवणं 21, पवरं दुमेसु जहा जंबू 30, सुदंसणा वीसुयजसा जीए नामेण य श्रयं दीवो 31, 3 / तुरगवती, गयवती रहवती, नरवती, जह वीसुए चेव, राया रहिए चेव जहा महारहगते, एवमणेगा गुणा बहीणा भवंति एक्कमि बंभचेरे जंमि य श्राराहियंमि श्राराहियं वयमिणं सव्वं, सीलं तवो य विणयो य, संजमो य, खंती गुती मुत्ती तहेव इहलोइय-पारलोइयजसे य, कित्ती य, पञ्चयो य, तम्हा निहुएण बंभचेरं चरियव्वं, सव्वश्रो विसुद्धं, जावजीवाए जाव सेयट्ठिसंजउत्ति 4 / एवं भणियं वयं भगवया, तं च इमं-पंचमहव्वय-सुव्वयमूलं, समण-मणाइल-साहुसुचिन्न / वेरविरमणपज्जवसाणं, सबसमुद्द-महोदधितित्थं // 1 // तित्थकरेहि सुदेसियमग्गं, निरयतिरिच्छ-विवजियमग्गं / सव्वपवित्त-सुनिम्मियसारं, सिद्धिविमाणअवंगुयदारं // 2 // देवनरिंद-नमंसियपूयं, सव्वजगुत्तम-मंगलमग्गं / दुद्धरिसं गुणनायकमेक्कं, मोक्खपहस्सऽवडिंसगभूयं // 3 // जेण सुद्धचरिएण भवइ सुबंभणो सुसमणो सुसाहू सुइसी सुमुणी ससंजए (स इसी समुणी स संजए) स एव भिक्खू जो सुद्धं चरति बंभचेरं 5 / इमं व रति-राग-दोस-मोहपवट्ठणकरं किंमज्म-पमाय-दोसपासत्थ-सीलकरणं अभंगणाणि य तेल्लमजणाणि य अभिक्खणं कक्ख-सीस-कर-चरण-वद्रण-धोवणसंबाहण-गायकम्म-परिमद्दणाणुलेवण-चुन्नवास-धूवण-सरीरपरिमंडण-बाउसिकं नह-केस-वत्थु-समारचणादिकं हसिय-भणिय-नट्ट-गीय-वाइय-नड-नट्टकजल्ल-मल्ल-पेच्छणबेलंबक जाणि य सिंगारागाराणि (रकारणाणि) य अन्नाणि

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