Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 04
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________ 41] [ भीमदाममसुधासिन्धुः / चतुर्थो विभागः सुपणिहितं इमेहिं पञ्चहिवि कारणेहिं मणवयण-काय-परिरक्खिएहि णिच श्रामरणंतं च एसो जोगो णेयन्वो धितिमया मतिमया अणासवो अकलुसो अच्छिद्दो अपरिस्सावी असंकिलिट्ठो सुद्धो सव्वजिणामणुन्नातो, एवं चउत्थं संवरदारं फासियं पालितं सोहितं तिरितं किट्टितं पाणाए अणुपालियं भवति, एवं नायमुणिणा भगवया परूवियं पसिद्धं सिद्धवरसासणमिणं श्रापवियं सुदेसितं पसत्थं 14 // सू० 27 // चउत्थं संवरद्वारं समत्तं तिबेमि // 4 // // इति नवममध्ययनम् // 6 // // अथ पञ्चमसंवर-परिग्रहविरमणाख्यं दशममध्ययनम् // जंब ! अपरिग्गह-संवुडे य समणे श्रारंभ-परिग्गहातो विरते विरते कोह-माण-माया-लोभा एगे असंजमे 1 दो चेव रागदोसा 2 तिनि य दंडगारवा य गुत्तीयो तिनि तिन्नि य विराहणाश्रो 3 चत्तारि कसाया झाण-सन्ना-विकहा तहा य हुंति चउरो 4 पंच य किरियायो समितिइंदियमहब्बयाई च 5 छज्जीवनिकाया छच्च लेसायो 6 सत्त भया' 7 अट्ट य मया 8 नव चेव य बंभचेरवयगुत्ती 1 दसप्पकारे य समणधम्मे 10 एक्कारस य उवासकाणं 11 बारस य भिक्खुपडिमा 12 किरियाणा य 13 भूयगामा 14 परमाधम्मिया 15 गाहासोलसया 16 असंजम 17 श्रवंभ 18 णाय 11 असमाहिठाणा 20 सबला 21 परिसहा 22 सूयगडझयण 23 देव 24 भावण 25 उद्देस 26 गुण 27 पकप्प 28 पावसुत 21 मोहणिज्जे 30 सिद्धातिगुणा य 31 जोगसंगहे 32 तित्तीसा श्रासातणा सुरिंदा अादि एकातियं करेत्ता एक्कुत्तरियाए वडिए तीसातो जाव उ भवे एकाहिका विरतीपणिहीसु, अविरतीसु य एवमादिसु बहूसु ठाणेसु, जिणपसाहिएसु, अवितहेस, सासयभावेसु, अवट्ठिएसु संकं कंखं निराकरेता सद्दहते सासणं भगवतो अणियाणे, अगारवे, अलुद्धे,

Page Navigation
1 ... 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510