Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 04
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 429
________________ 416] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / चतुर्थो विभागः य एवमादियाणि तव-संजम-बंभचेर-घातोवघातियाई अणुचरमाणेणं बंभचेरं वज्जेयब्वाइं सव्वकालं 6 / भावेयव्वो भवइ य अंतरप्पा इमेहिं तव-नियम-सीलजोगेहिं निच्चकालं, किं ते ?-अराहाणकअदंतधावणसे पमल-जल्लधारणं मूणवय-केसलोए य खम-दम-अचेलगखुप्पिवास-लाघव सीतोसिण-कट्ठसेजा--भूमिनिसेजा-परघरपवेस-लद्धावलद्धमाणावमाणा निंदण-दंसमसग-फास-नियम-तब-गुण-विणयमादिएहिं जहा से थिरतरक होइ बंभचेरं 7 / इमं च अचंभवेर-विरमण-परिरक्खणट्टयाए पावयणं भगवया सुकहियं, पेचाभाविकं, श्रागमेसिभह, सुद्धं, नेयाउयं, अकुडिलं, अणुत्तरं सम्बदुक्खपावाण विउसवणं 8 / तस्स इमा पंच भावणाश्रो चउत्थयस्स होति प्रबंभचेर-वेरमण-परिरक्खणट्टयाए, पढमं सयणासण-घर-दुवार-अंगण-भागास-गवक्ख-साल-अभिलोयण-पच्छवत्थुकपताहणक-राहाणि काकासा अवकासा जे य वेसियाणं अच्छंति य जत्थ इत्थिकायो अभिक्खणं मोहदोस-रतिराग-वड्डणीयो कहिति य कहायो बहुविहायो तेऽवि हु वजणिज्जा, इत्थिसंसत्त-संकिलिट्ठा अन्नेवि य एवमादी अवकासा ते हु वजणिज्जा / जत्थ मणोविन्भमो वा भंगो वा भंसणा वा अट्ट रुच हुज झाणं तं तं वज्जेजवजभीरू श्रणायतणं अंतपंतवासी एवम-संतत्तवासबसही-समितिजोगेण भावितो भवति, अंतरप्पा भारतमणविरयगामधम्मे, जितेंदिए, बंभचेरगुत्ते 1, 1 / वितियं नारीजणस्स मज्झे न कहेयव्वा कहा विचित्ता विब्बोय-विलाससंपउत्ता, हास-सिंगार-लोइयकहव्व मोहजणणी न आवाह-विवाह-वरकहाविव इत्थीणं वा सुभग-दुभगकहा चउसटिं च महिलागुणा न वन-देस-जाति-कुल-रुव-नाम-नेवत्थ-परिजणकहावि इत्थियाणं कनावि य एवमादियायो कहाश्रो सिंगारकलुणाश्रो तव-संजमबंभचेर-घातोवघातियायो अणुचरमाणेणं बंभचेरं न कहेयव्वा, न सुणेयव्वा, न चिंतेयव्वा, एवं इत्थीकह-विरति-समितिजोगेणं भावितो भवति अंतरप्पा

Loading...

Page Navigation
1 ... 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510