Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 04
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 413
________________ 1..] भीमदागमसुधासिन्धुः // चतुर्थो विभागा वासिणो सुरगणा, गेवेजा अणुत्तरा दुविहा कप्पातीया, विमाणवासी महिड्डिका उत्तमा सुरवरा 3 / एवं च ते चउबिहा सपरिसावि देवा ममायति, भवण-वाहण-जाण विमाण-सयणासणाणि य नाणाविह-वत्थभूसणा पवर-पहरणाणि य. नाणामणि-पंचवन्न-दिव्वं च भायणविहि नाणाविह-कामरूवे वेउन्वित-अच्छरगण-संघाते 4 / दीवसमुद्दे दिसायो विदिसायो चेतियाणि वणसंडे पव्वते य, गामनगराणिं य, श्राराभुजागाकाणणाणि य, कूव-सर-तलाग-वावि-दीहिय-देवकुल-सभ-प्पव-वसहिमाझ्याई बहुकाई कित्तणाणि य परिगेरिहत्ता परिग्गहं विपुलदव्वसारं देवावि सईदगा न तित्तिं न तुढेि उवलभंति, 5 / अच्चंत-विपुल-लोभामिभूतसन्ना वासहर-इक्खुगार-वट्टपब्वय-कुंडल-रुचग-वरमाणुसोत्तर-कालोदधिलवण-सलिल-दहपति-रतिकर-अंजणकसेल-दहिमुह-वपातुप्पाय-कंचणकचित्तविचित्त-जमक-वरसिहर-कूडवासी वक्खार-अकम्मभूमिसु सुविभत्त-भागदेसासु कम्मभूमिसु, जेऽवि य नरा चाउरतचकवटी वासुदेवा बलदेवा मंडलीया इस्सरा तलवरा सेणावती इन्भा सेट्टी रट्ठिया पुरोहिया कुमारा दंडणायगा गणनायगा माडंबिया सत्थवाहा कोडबिया अमचा एए भन्ने य एवमाती परिग्गहं संचिणंति, अणंतं, असरणं, दुरंतं, अधुवमणिच्चं, असासयं, पावकम्मनेम्मं, अवकिरियव्यं, विणासमूलं, वहबंध-परिकिलेसबहुलं, अणंत-संकिलेल-कारणं 6 / ते तं घण-कणग-रयण-निचयं पिंडिता चेव लोभक्था संसारं अतिवयंति सव्वदुक्ख(भय)संनिलयणं, परिग्गहस्स य अट्ठाए सिप्पसयं सिक्खए बहुजणो कलायो य बावत्तरि सुनिपुणायो लेहाइयायो, सउणरुयावसाणाश्रो गणियप्पहाणाश्रो चउसटिं च महिलागुणे रतिजणणे, सिप्पसेवं असि-मसि-किसि-वाणिज्जं, ववहारं अत्थ-सत्थइसत्थ-च्छरुप्पवा(ग)यं विविहायो य जोगजुजणायो भन्नेसु एवमादिएसु बहस कारणसएसु जावजीवं नडिजए, संचिणंति मंदबुद्धी परिग्गहरसेव

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