Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 04
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 421
________________ भीमदागमसुधासिन्धुः। द्वितीयो विभागः मंतोसहि-विजा-साहणत्थं, चारण-गण-समण-सिद्धविज्ज, मणुयगणाणं वंदणिज्जं, श्रमरगणाणं अश्वणिज्जं, असुरगणाणं च पूयणिज्ज, अणेगपाखंडि-परिग्गहितं, जं तं लोकमि सारभूयं, गंभीरतरं महासमुद्दाश्रो, थिरतरगं मेरुपन्वयायो, सोमतरगं चंदमंडलायो, दित्ततरं सूरमंडलायो, विमलतरं सरयनयलाओं, सुरभितरं गंधमादणायो, जेविय लोगम्मि अपरिसेसा मंतजोगा जवा य विजा यजंभका य अत्थाणि य सत्याणि य सिक्खायो य भागमा य सचाणिवि. ताई सच्चे पइट्ठियाई, सच्चपिय संजमस्स उवरोह. कारकं किंचि न वत्तव्वं, हिंसासावजसंपउत्तं, भेयविकहकारकं, अणस्थवायकलहकारक, अणज्जं, अव(या)वायविवायसपउत्तं, वेलं, श्रोजधेजबहुलं, निल्लज्जं, लोयगरहणिज्ज, दुट्टि, दुस्सुयं, अमुणियं / अपणो थवणा परेसु निंदा-न तंसि मेहावी, ण तंसि धनो, न तसि पियधम्मो, न तसि कुलीणो, न तंसि दाणपती, न तंसि सूरो, न तंसि पडिरूवो, न तंसि लट्ठो, न पंडियो, न बहुस्सुयो, नवि य तंसि तवस्सी, ण यावि परलोगणिच्छिय-मतीऽसि, सव्वकालं जाति-कुल-स्व-वाहि-रोगेण वावि जं होइ वजणिज्जं दुहिलं (दुहनो) उवयार-मतिक्कतं एवंविहं सच्चपि न वत्तव्वं . 12 / ग्रह केरिसकं पुणाइ सच तु भासियव्वं ?, जं तं दव्वेहिं पजवेहि य गुणेहि कम्मेहि, बहुविहेहिं सिप्पेहि भागमेहि य नाम-क्खाय-निवाउवसग्ग तद्धिय-समास-संधि-पद-हेउ-जोगिय उणादि-किरियाविहाण-धातु-सर(रस)। विभत्ति वन्नजुत्तं तिकल्लं 13 / दसविहंपि सञ्चजह भणियं तह यं कम्मुणा होइ दुवालसविहा.होइ भासा 11 / वयणंपिय - होइ सोलसविहं 15 / एवं अरहंतमणुनायं समिक्खियं. संजएण - कालंमि य वत्तव्वं 17 / / सू०२४ // इमं च अलियं पिसुण-फरुस-कडुय-चाल-वयण-परिरक्खणट्टयाए पावयणं भगवया सुकहियं, अत्तहियं, पेचाभाविकं, पागमेसिभ', सुद्धं, नेयाउयं, अकुडिलं, अणुत्तरं, सव्वदुक्खपावाणं विश्रोसमणं, तस्स इमा पंच

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