Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Author(s): Rai Dhanpatsinh Bahadur
Publisher: Rai Dhanpatsinh Bahadur

View full book text
Previous | Next

Page 223
________________ २२६ रायपसेणी। असण पाण' खाइम सावरीण पोळपा नग सेजमा सघार तेण वत्य पडिग्गह कवन पावपच्छोण उसह भेस ग व पडिलामेमाणे २ वह सीनव्वयाणवरमगा पच्चखाण पोसहो दवासेहिं अय्याण भावमा जाड तत्यरांय कझाणिय जावराय ववद्वारे विनताई जिवसतुगा सद्धिसयमेव पच्चूवेस्खमाविहरति ततेणसे जियशतु राया अगणयाकयाइ महत्य जाव पाहुड सफ़ेद चित्त' सारहि सदावेद एववयासी गत्यहिण तुम्ह विश्वासेवविध गागरि पयसि स्मरगणो इम महत्व जाव पाहुड उवणेहि ममपाउग्गहण जहा भणियमवितह मदिड वयण विरागवेहि तिकट्ट विसन्मिते ततेगा सेचित्त सारही जियप्तगणारमा विभिए समणे त महत्व जाव पोर्णमास्या च प्रतिपूर्णमहोरात यावत पोषधमाहायदिपोषध सम्यक अनुपालयन् (पीठफलगे)ति पीठमासन फलक अवष्टम्भाथ शट्यावसति। शयन वायव प्रसारितयादै सुप्यते मस्तारको लघुतर', (बत्यपडिग्गा बलपाय पुच्छरोणन्ति) वान प्रतीत पतत भन पान वा गृहयातीति पता लिहादित्वादच प्रत्यय'। पावन्दापादपोकनक रजोहरण द्यौषध प्रतीत भैपन पथ्य “आहा परिगृहहिन्तवीकामहि अप्पाण भावे भाणे विहर" । सुगम क्वचित्याठ (पहूहि सीलबय गुणवेरमापीसहीववाहि अप्पा भावे मागे विहरद) इति तव शीलवृतानि टुल प्रागातिपातविरमणादीनि गुगावेरमणानि गुणवृतानि दिग्वतादीनि शौषधीयवासाश्चतुर्दश्यादिपर्वी तापवासादिस्तरात्मान भावयन् विहरति प्राति “जने केसीकुमारसमणे तमेव उदागादू उवाछित्ता केमीकुमारसमण पन्चविहेण अभिगच्छद। तनहा। सरित" मित्यादि भाचार जनतेश्यामायातिपातवेरमग्णादिकगुणवृतदिवेरमदिश्चणतेअभिक्षकुव्यापारयकाउसरवु प्रत्यारव्यानतेनउफारसीप्रमूख श्रीपधसहित उपवासताइसहित झापयामात्मामति भावतुथकु ग्माउनुधकु तेह तिहा राज कायमवाणु राज व्यवहारपरिणतह जिनमबुरामा सायद पोतद जयोतउयकु विचरइड तिहारपछी तेह जितशव राजा कोडक समद मोटुयब कमल भेटम मज्जकरावरकराबति चिव सारथीपति तेडावइनेडाचीन एमबीललूउ चाउ तुझे हरित सेरिया नगरीमति प्रदेस रायाइ एम पहले टूअथ बनल भेटाउ पहचाड मार लागत निमकर माचु सदरहित बचनप्रति बीनबजे दमकमी दरमहरिवसारधीविरूज बाजाधी तिद्वारपको ते जिन सारयो जितगत दु राजाद विराज पर तहनोटुप्रय बना खत

Loading...

Page Navigation
1 ... 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289