Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Author(s): Rai Dhanpatsinh Bahadur
Publisher: Rai Dhanpatsinh Bahadur

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Page 277
________________ १८४ रायपसेयो। पोसहसाला तेणेव उवागच्छति २ पोसहसालपमझदूपो २ उच्चा पासवण भूमिपडिलेहेति दभसधारग सधरेड् दमसथारग टुस इति पुरत्याभिमुहे सपलियकन्निसन्ने करयलपरिग्गहिय सिरसा वत्त मत्वए घजलिकटू एव क्यासी नमोत्धुण अरहताण जाव सपत्ताण णमोत्यण केसि कुमारस्स समणस्स धम्मधम्मायरियस्स धम्मोवटेसगस्स वदामिण भगवत तत्थगय दूहगए पासउमे भग बतत्वगए इहगव तिकटू वदति णमसति २ पुस्विपिणमए केसि कुमार सममास्स अतिए धूलए पाणातिवाए पच्चक्रवाए जाव परि ग्गहेइयाणि पिण तस्सेव भगवतो अतिए सव्व पाणातिवाय पच्च क्खामि जाव परिग्गह सव्व कोड जाव मिव्वादसएणमल्ल अकर णिज्म जोग पच्चस्खामि सव्व असण चउविहपि आहार जाव इति आलिगमविशेषनापरियन्दिभमाणे इति स्तूयमान । परिभुविज्झमाणे इति परिभुव्यमान'। गिरिकन्दरमल्लीणेइव पस्यगवरपायचे इति गिरिक दराया लीनइव चम्पकपादप सुख व्यापउछन् सरीर दाधवरडू आकमुथकु विचरतु ति द्वारपछी तेय प्रदेसी राजा सुरियकतार देवीन मनपणिकरी अटूपतउद्देष अणधरतुथकउ जिहा पौसधसाला तिहा पावर भावी नई पोपधसालापतिप्रमार्जइपु जीनदू वडानति लघूनीति भूमिप्रति पडिलेहद डाभनुस धारउ पाघरद डाभसथारी ऊपरिचढद पूवादिसिसाहमुथकु पालठीकलीछठउ बिट्टू हाथ करीनीय जानु मस्तक भाव प्रदक्षिणारूप मस्तक अ जलीकरी इम बोल्यु नमस्कारथाउ अईतमधी पादनमीत्युणक इजिहागिठाणसपवाणति हालगिकरा वलीकसै छद नमस्कार केसी कुमा रनि श्रमणनइ माहराधमाचार्यन धर्मोपदेसकन बादउछउ भगवतकेसीगुरुप्रति केहवाछ तिहायताकद हुइहाथकउवादउछउ देषउमुझतद् हेभगवनमुमतहाथकागएइहगएदाग प्रतिदकहोम वादह नमस्कारकर पूर्व पणिमद केसी कुमार श्रमणप्रति समापद थूलथकी प्राणा नियात १ पवनउ इमस्थलमृष्टावादस्थल प्रदर्चादानपचवस्तूस्वदार४ सतीषपरिग्रहपरिहिवडा तेहन भगवतने समीप सबंथकाकरणकरीवण अनुमतिभेद इदमनववचनकायाडकरी प्राणासासो म्बामलक्ष यतेनु यतिपातविनाशतेहपच्चपूछउतिमुछर इमजसर्वथकीमृपावाद अहत्तादानमैष्ट न परिंग उपवयु छोध मानमावालोभनम एकलह अभ्याख्यानमू यरति अगतिमायाम्पामिश्ता दसपसल- १८ स्थानम पापनीकरपियकरवा अयोग्य एह । सर्वथका असना

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