Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Author(s): Rai Dhanpatsinh Bahadur
Publisher: Rai Dhanpatsinh Bahadur

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Page 287
________________ रापपगा । २८४ मणोमागसिव खय भुत्त कड परिसेवि भावी कम्म रहोइन अरहा अग्हम्स भागीत त काल मणोवर कायजोगे वट्टमागार मवलोए सबजीवाणा सव्वभावे भावे जागमागो पाममागो दिन रिस्सद तएगासे दढपणे केवली एवारवेगा विहारण विहरमा वहि वासाइ केवलपरि पाउ पाउणिहिति पाउणित्ता अप्पन आउसे अाभोएइ अप्पणो आउसेम अाभोएत्ता बहूद्द भत्ता पच्चकावाइस्सद पच्चक्खाइत्ता वहि भत्ताइ असाए छेडम्म.. वछि छेदित्ता जस्मट्ठाए कीरहणग्ग भावे मुडे भावे अगहाणा.. अद तवणगाते केसलावे वभवेरवासे अत्यत्तग अणुवाहगग भुमि सिज्झातो फलहसेज्माउरघरपवेसोलहावदाद माणावमाणाहिो पर्गेहि हीलगाउ निदणातो खिसगााउ गरहगाउ तन्मगाउ तान' प्यापनार्थ मणी मगोसियसि मनमि भव मानसिक तत्व कदाचिदसापि प्ररित भवगि उच्चने मनमि व्यवस्थित मानमि मनोमानसिक खइयतितिपित चवनीतमिति भावः । सैवियन्ति प्रतिसेवित स्वादि अध' कर्मभूमो निपात रह' कमगुप्तस्थानकृत परीहि सिहोम सकलजीवजिहाथी घाइते आगमिजाइतेगतिस्थति तेकायस्थतिभवायतिचिवणातदेव लीकध वचउर्दवताकरकी पणिऊपजवुतेउपपात तर्कविचारणा पूर्वदवीधुतपत्थाव डउ भागलिकर मनाचितन तहका चयगय भीगव असनादिक दीधुवीवादिक मेवउ मधुनादिक प्रगटकर्म उकर्म तेयहत एकातभजतानधीमनुष्यदेवनद कीटइपरवरसाधका तेतेकालनविपद मना कारयोगयोगनैविप वर्तता सवलोकदचिभवनि सर्वभावजात उपकाउ देपनुयकउ विहरि तिद्वारपछी तह दढपणउ केवली ण्हवरुपि विचरवद विचरतउधकु घणा वरिसलगइ । पवार पालम्यइ पालीनदू आपणो पाउपानुसेस्व छहउउजेहनद प्रापशु पाउपानुसेप जी घग्या भातप्रतिद पच पच्चखीन घणा भात भासणा छेदस्य घणाभात असण छेटीनड नद अथड करी अवेलपणु मुडभावइद्रव्यमूडतेलीत्यादिभावनड ते क्रीधादित्याग ग्नाननई धावनही कामनउऊपाडवु ब्रह्मचर्यतुपालवु छननु अगथारबु पादवीय नुटाल भूमिमुरउ पादिमुव भिक्षान अधरपरघरपदस किद्वार भक्तादिकलाधउक्विारिनलाज विद्यारह । पामकिवारद' पण आदरपाम अपरलीकड मर्मनुअघाडवू निदवु तेमनरीगन खिसणोतलाकसमीक्षिहीलबु गई णानिदवू अगुली करीरेजाणीसएह वह तार

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