Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Author(s): Rai Dhanpatsinh Bahadur
Publisher: Rai Dhanpatsinh Bahadur
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रायपसेणी। होत्या दहेव सेयवियाए नयरीए अधम्मिए जाव नोसम्म करभर विति पवत्त त्ति मेगा अम्ह वत्तवयाएसु वडू जाव उववमे तस्सण अज्झगस्स तुम नतुए होत्था इ8 कते जाव पासणयाए सेइइच्छ माणुस्सलोगत्वमागत्ति नोचेवण सचारणति हव्यमागच्छति तते चउहि ठाणेहि पदेसी अहणोववणे नरए नेरतिति इत्यद माणुस्स लोग इत्वमागच्छतित्तते अडूणो ववणे नरए नेरदए समत्वेषा वैयमाणेइत्यइ माणुस्त लोग हव्वमागछि ततेनोवेण सचापति हव्वमागचित्तते अह गोववन्नए नरए निरति ते नगरपालगदि भुन्झो २ समर्माहविन्झमाणे इत्थइ माणुस लोग हव्व मागच्छित्त नोचेवण सचाणति हन्वमागच्छित्तते अहणो ववन्नए नरए सुनेर
तोत्सक हुदव नन्दिजनन । उदुम्बरपुणधलभ्यन्ततस्तेनोपमानम । मूलाय वा इत्यादिश्वलयामतिशयेनगत एतदेव व्याचप्टेश्चलया भिन्न श्चला भिन्न पचलाभिन्नक स्तथा एगाडवमिति एक्यात एकन घातेनेति भाव । कूडाहव्वमिति कूटाघात कूटपति तस्य मृगस्वेव घातेनैति भार, चउनि ठाणेह इत्यादि तब सुहद त वेदनामेक कारणम् । द्वितीय परमाधार्मिक कदर्थनम, ततीय नरकवेदनीय कमा जचत उद्विजन चतुध नरकायुष्याक्षयत उद्विजननम, चहि ठाणेहि
तामहि वाब मनुप्प लोकप्रति मी यावीवउ पणिनहीनिश्च सका शीघुमावीन चिट दू कारण प्रदेसी तत्कालिजतु उपनुनकनविपद नारकी बाछड्छद मनुष्य लोक प्रति शीष्ट पाश्चिकारणकहछ तत्कालनु उपनु नरकन विषद नारकी उत्कट महावैननापति वैयतउथ का वादल मनुष्य लोकामतिसी प्राविवड पयिसकइ मी तीन एतलबेदनाइआक्रमउ तेमाटै भावीनसकइतिप्रथमकारण तत्कालिनउऊपनउ नमक नारकी नरकपालइ देव परमा धामीवलार अधिक्यमानथक परमाधामीपनरनातिनाणिक्षणमासु म कीतुनधो वाकडा मध्य लोकप्रति सीधु घावी नमकद मीट भावीनद एतल दूपरमाधामी यानन्यायसहापाबीनम कैण्डदीनउ कारण हवडानम् अपनु नरकन विपिड नारकी पोतानउ दार्मदेदनीकाटिक क्षय यणगइधक विपाकरमप्रवेटधका निरजडथक जीवनसथीरियागय कद् घण वाकडू मनुप्य लोकप्रति सीघयाधिवड नसकद दादीनएइतेवाकरण एमज नग बधि पाटपा कम नायगइयल पवेधका धगतिरणिधकर घयावाक्क मनुष्य लीकप्रति सीपश्चावि बउ नमक सीध पावन इचउथ कारपा४ प्रति एम विद कारण प्रदी हिदहानउ

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