Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Author(s): Rai Dhanpatsinh Bahadur
Publisher: Rai Dhanpatsinh Bahadur

View full book text
Previous | Next

Page 258
________________ रावपसणी। तेसि पुरिमाण असण साहेति तणते पुरिमाणहाया सरलिकम्मा जाव पावत्यित्ता जणेवसे पुरिसे तेणेव उवाच तगासे पुरिम तेसि पुरिसाण मुहासगवरगवागा ते विउल ग्रमण पाण खादम साइम उवणेत तेगाते पुरिमातविउल असण ४ यासाएमागावी साएमाणो जाव विहरति जिमिय मृत्तत्तगया विवणा समारो बार ताचोक्खा परमसुइ भूवात पुरिस एव वयासी अहोगा तुम देवाणु प्पिया जड्डे मूढे अयति तेनिबिन्नाणे अणुवर्टसल? न मा तम अच्छद दुहा फालिय सिवा जोइपासित्तए सेतैग8 पण्मी एव बुच्चाइ सूढतराएण तुम्ह पएसो तुच्छतराड तण्ण पदेसीगया केसी कुमार समण एव वयासी जुत्तण तुम भते अभीयागा दक्वाण पतिद्वारा कुसलेण मेहावीण विणीवाण विणाणपन्नाण उवदेसट्ठाण अह इमीसाए महालियाए महव्वर रिसाए मम्मे सपडवीहए। इति वामलाकरा इदादय स्त' नलिणीयण्डान्तपा वोधके उस्थित उदयप्राप्त गुहद् धरणीकाप्टकर सरकरी अरणीकाष्टप्रतिमधेमधन अग्निणडडू अग्निमधूपर ने पुरुषमद अय अन्नप्रति राधर तिहारपरी तेह बीजापुरुष स्नानकरी देवपूनाकरी दुरवप्नटाल वीनद्र अर्थिमपीतिलकादिककरी मुद्धवस्वपहिरी निहा राधणहार पुरुप तिहा यावर तिहार परी वेद डाउगुरुप वेहनै पुरुषानइस्नानकरी सुखि आसाद अबीवरदीने तक विस्तीर्ण पन्न पांनी खादिमफलादिक मुपवास भागलि माणीदद तिवारपछी तेह पुरुप वित्तीय असनादिक च्यारप्रति आस्वादतायका आस्वादयुतयोडुपीवधणुनापस सेलडी धणुपावुधोनीपनुपप डानेपादिमपाताथका परितज्ञ माणासमस्त जिमताधका उदनमूपडामदादिपरिभाए मायानाही मादिविहची जमाडानतर अपि देवाधका विचरडठद निश्चयथका प्राचमनलीधर परमपवित यवाघमा तह मूर्पगरुपति प्रमगोल्या अहौति देपर तुम्हे देवानुनिट जड मूष अपडित छह विज्ञान दालारहित बडानुउपदेपनधीलाधु जणकारी वा विलिसध्याता काटना फालिपानविपद अग्निप्रतिदपवीनइ क्षेसी गुरुवार तब भूपतद हटाति हमदमी इम-धीर इद मूढपभूपंछद्र तुम्हें हेप्रदेसीनी तुइछद गुरद इमाहीयको प्रदेसी राजा केसी कुसार समय प्रति इम बोया गुहा तुम्ह पूज्य पतिदका अवसरनाजायना इडाहीन पनि याताधयोना वृधिवत बुद्धिपतनद विनोननद विधानपात्तने एतलवानातनद गुरपासर उप - -

Loading...

Page Navigation
1 ... 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289