Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Author(s): Rai Dhanpatsinh Bahadur
Publisher: Rai Dhanpatsinh Bahadur

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Page 225
________________ २२८ रायपसेयो। एवववामी एव खलु अह भतेजियसत्तु णाएसिस्सरगणो इम महत्य जाव विसजिए तचेव जाव समोसरण भते तुझे सेयविय गरि तएण केसीकुमार समणे चित्तण सारहिणा दोच्चपि तच्चपि एवं वुत्त समाणे चित्त सारहि एववयासी चित्ता सेजहाणामण वणसडे सियाकिण्हे किण्हो भासे जावडरुवे मैतूण चित्ता वणसडे तेसि बहण टुपय चउप्पयमिय पसुपक्खिसिरीसवाण अभिगमणिज्झेहता अभिगमणिज्म तसिचणचित्ता वणसडसि वहवे मिनूगा णामपावस मुणापरिवसतिजेण तेस वहुण टुपय चउप्पयमिय पसुपक्खि सिरी सिवाण चेवमससोणिय पाहारेति सेगूण चित्ता वणसडे तेसि बहूण टुपयचउप्पयसरी सिवाणा अभिगमणिज्झ णोतिकिम्हाभते सोयसग्गे एवामेव चित्तात झपि सेवविवाए णयरीए पदेसीणामराया परिवसइ अधम्मिए जाव णोसम्म करभरवितिपवत्तत्तिणकह अह चित्ता सेय अचित्ताना द्रव्याया छवादीना व्यत्सर्जनेन परिहारेण। उक्तञ्च । “अवणे पञ्चककुहादू रायवरचिधरूवाणि छत्त खागोवाहणमउउन्तह चामरमउय इति। एकाशाटिका यस्मिन् तत्तथा प्रदेसी रायनद एह महार्थ भेटणुले विसर्जउ तिमजपूर्ववत सेवियानगरीजोदवायोग्यछद समी सरउ हेपूज्य तुमे सेयबिया नगरीमति तिहारपछी केसी कुमार श्रमय चितनद सारथीन जिवेला वणिवला एमकहथकदहूत चिव सारथीप्रति एम बोला इचिन तेहयथादृष्टातद वनखड कोइकहु कालु दासनुवर्णद्र कालाछद्र कातिजेहनी वननुवर्णक भलूरूपचन तेहनिश्च इचिव रयोप्रति वनखंड तेहनद धयान विपद चतुस्पद मृग पसु पस्वीउ दरी सुलन आगनिवायोग्य हुइआदरवायोग्यहइइत्यर्थ चित्रकहकद भगवनवनखडपसूप खीनागमिवायोग्य बलीगुरु मदछहा हेचित वनखडनदविषद घग्या मालबाहेडा नाम पापरु पसुपस्वीनामारणहार वसई जहआहेडा तेहना प्रणाना दिपद चतुपद मृग पसु पस्सी उदिर छलादिकनु मासलीहाप्रति पारभरच तह निश्चदू इशिव वनसड तेहनद घयानइ हिपद चउपद उ दिर तुलादिकन पागमवायोग्यहुइ चिवकहइइइन इवनीगुरुकहरुकाइकतेवनखड़ागलिमिवायोग्यन हदवनी विवकहडछद तहवनखडसोपसग घड मरवानुबाधवानुवामतइथयउतेमाटतेवनखडपम्पस्वीन आगमिगनयोग्यनगुदवलीगुरुकहछदएणदृष्टात हरित तुम्हारी सवियानद नगरीनद प्रदसी नाम राजा वसइई अधर्मीछे अहमिठंइत्यादिकसबपाठकह पातानार्दसनविपर्याय

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