Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ विशिष्ट व्यक्तियों को माताएँ जो स्वप्न निहारती हैं उनके अन्तर्मानस की उदात्त प्राकांक्षाएं उसमें रहती हैं / वे सोचती हैं कि मेरे ऐसा दिव्य भव्य पुत्र हो जो दिग्दिगन्त को अपनी यशोगाथा से गौरवान्वित करे। उसकी पवित्र भावना के कारण इस प्रकार के पुत्र प्राते भी हैं / यह अवश्य स्मरण रखना चाहिए कि स्वप्न वस्तुतः स्वप्न ही है / स्वप्न पर अत्यधिक विश्वास कर यथार्थता से मुंह नहीं मोड़ना चाहिये / केवल स्वप्नद्रष्टा नहीं यथार्थद्रष्टा बनना चाहिए। यह तो केवल सूचना प्रदान करनेवाला है। दोहद : एक अनुचिन्तन प्रस्तुत अध्ययन में मेघकुमार की माता धारिणी को यह दोहद उत्पन्न होता है कि आकाश में उमड़-घुमड़ कर घटाएं पायें, हजार-हजार धारा के रूप में वह बरस पड़ें। आकाश में चारु चपला की चमक हो। चारों ओर हरियाली लहलहा रही हो, रंगबिरंगे फल महक रहे हों, मेघ की गंभीर गर्जना को सुनकर मयूर केकारव के साथ नृत्य कर रहे हों और कलकल और छलछल करते हए नदी-नाले बह रहे हों, मेंढकों की टर-टर ध्वनि हो रही हो। उस समय मैं अपने पति सम्राट् श्रेणिक के साथ हस्ती-रत्न पर प्रारूढ होकर राजगह नगर के उपवन वैभारगिरि मे पहुँचकर आनन्द क्रीडा करूं। पर वह ऋतु वर्षा की नहीं थी, जिससे दोहद को पूति हो सके। दोहद की पूर्ति न होने से महारानी मुरझाने लगी। महाराजा श्रेणिक उसके मुरझाने के कारण को समझकर अभयकुमार के द्वारा महारानी के दोहद की पूर्ति करवाते हैं। दोहद को इस प्रकार की घटनाएं प्रागम साहित्य 81 में अन्य स्थलों पर भी आई हैं। जैनकथासाहित्य बौद्ध जातकों में 82 और वैदिक परम्परा के ग्रन्थों में दोहद का अनेक स्थलों पर वर्णन है। यह ज्ञातव्य है कि जब महिला गर्भवती होती है तब गर्भ के प्रभाव से उसके अन्तर्मानस में विविध प्रकार की इच्छाएँ उदबद्ध होती हैं। वे विचित्र और असामान्य इच्छाएँ 'दोहद' 'दोहला' कही जाती हैं / दोहद के लिए संस्कृत भी पाया है। 'द्विहृद' का अर्थ है दो हृदय को धारण करनेवाली / गर्भावस्था में मां की इच्छानों पर गर्भस्थ शिशु का भी प्रभाव होता है। यद्यपि शिशु की इच्छाएँ जिस रूप में चाहिए उस रूप में व्यक्त नहीं होती, किन्तु उसका प्रभाव मां की इच्छात्रों पर अवश्य ही होता है / मैंने स्वयं अनुभव किया है कि कंजस से कंजस महिला भी गर्भस्थ शिशु के प्रभाव के कारण उदार भावना से दान देती हैं, धर्म की साधना करती है और धर्मसाधना करनेवाली महिलाएं भी शिशु के प्रभाव से धर्म-विमुख बन जाती हैं / इसलिए यह स्पष्ट है कि गर्भस्थ शिशु का प्रभाव मां पर होता है और माँ की विचारधारा का असर शिशु पर भी होता है। जीजाबाई आदि के ऐतिहासिक उदाहरण हमारे सामने हैं, जिन्होंने अपने मर्भस्थ शिशु पर शौर्य के संस्कार डाले थे। दोहद के समय महिला की स्थिति विचित्र बन जाती है / उस समय उसकी भावनाएँ इतनी तीव्र होती हैं कि यदि उसकी भावनाओं की पूर्ति न की जाये तो वह रुग्ण हो जाती है। कई बार तो दोहद की पूर्ति के अभाव में महिलाएं अपने प्राणों का त्याग भी कर देती हैं। सुश्रुत भारतीय आयुर्वेद का एक शीर्षस्थ ग्रंथ है। उसमें लिखा 81. विपाक सूत्र-३; कहाकोसु सं. 16; गाहा सतसई प्र. शतक गा 1-15, ---3-902 5-72; श्रेणिक चरित्र; उत्तरा. टीका 132, पावश्यक-चूणि 2 10 166 निरियावालिका 1, पृ० 9-11, पिण्ड नियुक्ति 80 ; ज्यवहारभाष्य 1, 3, पृ० 16; 82. सिसुमार जातक एवं वानर जातक; सूपत्त जातक: थूस जातक, छवक जातकः निदान कथा; 83. रघुवंश--स० 14; कथासरित्सागर भ० 22; 35; तिलकमंजरी पृ. 75; वेणीसंहार / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org