Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinagama Prakashan Sabha
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· शतक ३. - उद्देशक १.
भगवत्सुधर्मस्वामंप्रणीत भगवती सूत्र
२३
४. ' पइरोयणिंदे 'ति दाक्षिणात्याऽनुरकुमारेभ्यः सकाशाद् विशिष्टं रोचनं दीपनं येषामस्ति ते वैरोचना सौदीच्याऽसुराः, तेषु मध्ये इन्द्रः परमेश्वरो वैरोचनेन्द्रः साइरेगे केवल 'ति औदीप्येन्द्रत्वेन बलेर्विशिष्टतराद् इति.
४. [ ‘वइरोयणिंदे’त्ति ] दाक्षिणात्य असुरकुमारो करतां जेओनुं विरोचन ( कांति) वधारे छे ते वैरोचन, अर्थात् जेओ दाक्षिणात्य असुरकुमारो करतां विशेष प्रकारे दीपे छे ते वैरोचन-उत्तर दिशामा रहेनारा असुरकुमारो, ते वैरोचन असुरकुमारोनो ने इंद्र ते वैरोचनेन्द्र [ 'साइरेमं केवलकणं 'ति । वैरोचनेंद्र, उत्तर दिशामां वसता अमुरोनो इंद्र छे माठे चमरेंद्र करता ते इंद्रनीलन्धि विशेष होय छे.
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९. प्र० - मंते चि भगवं दोथे गोयमे अन्गिभूई अणगारे समर्ण भगवे महावीरें पंदर, नमसह, नर्मसित्ता एवं वयासी: जह णं ते! थली परोयणिंदे, वइरोयणराया एमहिडीए, जाव भंते एवइयं च णं पभू चिउब्लिचए; घरणे णं मंते ! नानकुमारिदे, नागकुमारराया केमहिडीए, जाव - केवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए ?
१. मूलच्छायाः भगवन् इति भगवान् द्वितीयो गौतमोऽग्निभूतिः अनवार श्रम भगवन्तं महावीरं मन्दते, नमस्यति, नमस्विरया एनम् अवादी:यदि भगवन् । बति वैरोचनेन्द्रः, वैरोचनराज एवं बाबद एतावच प्रभुर्विवितुम् परमो भगवन्नागकुमारेन्द्रः, नागकुमारराजः किमहार्दिक
नागराज धरणेंद्र.
यावत्-कियच्च प्रभुर्विकुर्वितुम् ? - अनु०
१. नागकुमारोगा आ रीतिए छे:
"कहिं भंते दाहिना मागकुमारदेवा परिवति गोषमा जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं इमीसे रयणप्पभाए, पुढवीए असी उत्तरजोयणसय सहस्सबाहल्लाए उवरिं एवं जोयणसहस्सं उग्गाहित्ता, हेट्ठा एवं जोयमसहस्वमिता, मन्छे अट्टत्तरिजोवणसयसहस्ते एत्थ में दाहि जिल्ला नागकुमाराणं देवाणं चोयालीसं भवणावाससय सहस्सा हवंति ति अक्खायं. ते णं भवणा बाहिं वहा, जाव- पडिरूवा. एत्थ णं दाहिणिल्लाणं नागकुमाराणं पणत्तापयता ठाना गण्णत्ता तिसु वि लोगस्स असेनाए भागे एत्व बहने दाहिमा के नामकुमारा देवा परिवर्धति महिडीया, जाविति भरणे एथ नागकुमारिंदे, नागकुमाररावा परिवति मद्दि डीए, जाव- पभासेमाणे. से णं तत्थ चोयालीसाए भवणावाससय सहस्साणं, छ सामाणियसाहसी, तायत्तीसाए तामत्तीसवाणं, उई लोगपाळा छहं अग्गमहिसीनं सपरिवाराणं, विन्दं परिसार्ण, सत्सहं अनिदानं सत्त अणिमाहव चवीसाए आयरक्लदेव साहस्तीर्ण, अमेशि व बहू दाहि जिल्लाणं नागकुमाराणं देवाणं य, देवीणं य आहेवचं, पोरेवचं, जाव-कुब्वे माणे विहरति " ( प्र० क० आ० पृ० १०५ -६).. आ० पृ० १०५ -६ ).
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" धरणस्स णं नागिंदस्स, नागकुमाररण्णो पंच संगामिआ अणीभ, पच संगामिआ अणीयाहिवई पण्णता, तं जहा:- पायत्ताणीए, जाव-रहाबीए मंद पायताणीवाहिवई जसोयरे आसराया पीढाणीयादिवई, सुई संहत्यिराया कुंजराणीयाहिवई, नीलकंठे महिसाणीयाहिवई, आणंदे राणीवादिवई" ( स्था० ० ० ० २५०).
·
धरना निवास, सोकपालोना उपपात पतो, पांच सहायक सैम्यो, पांच सेनापति, अममहिषीओ आदिनो वर्णक
<< 'धरणस्स णं नागकुमारिंदस्स, नागकुमाररनो धरणप्पने उप्पायपव्वए दस जोगणसगाई उई उत्ते दस गाउवसगाई उम्देहेणं, मूळे दस जीव सयाई विक्खंभेणं. धरणस्स णं जाव-नागकुमाररनो कालवालस्स महारनो कालप्पभे उप्पायपव्वए दस जोयणसयाई उङ्कं उच्चत्तेणं एवं चेव, एवं जाव, संखवालस्स, एवं भूयाणंदस्स वि, एवं लोगपालाणं वि से जहा धरणस्स” x x ( स्था० क० आ० पृ० ५५० ). धरणेंद्रना उपपात पर्वतनी प्रमाणे छेः x x ” ( स्था० क० आ० पू० ५५० ).
९. प्र०र बाद ते बीजा गौतम अग्निभूति अनगार श्रमण भगवंत महावीरने यदि छे, नमे छे, नमीने तेओ आ प्रमाणे बोल्या के: है भगवन् ! जो वैरोचन इंद्र, वैरोचन राज बलि एवी मोटी दिवालो के अने यावत्-एटलं विकुर्वण करवा शक्त छे तो नागकुमारनो इंद्र अने नागकुमारनो राजा धरण केवी मोटी ऋद्धिवाको छे अने यावत्-ते केटलं विकुर्वण करी शके छे ?
धरणसामकुमारिदस्त, पामकुमाररण्यो छ अगामहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहाः- अल्ला, सका, सतेरा, सोदामिणी, इंदा, घणविज्जुया," ( स्था० क० आ० पृ० ४१८ ).
"हे भगवन् दाक्षिणा नागकुमार देवो कवे स्थळे बसे ? हे गौतम! जंबुद्वीप नामना द्वीपना मंदर पर्वतनी दक्षिणे आ एक लाख, ऐसी हजार योजनना बाहल्यवाळी रत्नप्रभा पृथिवीनो उपरनो एक हजार योजन प्रमाण भाग अवग्राही अने नीचेनो एक हजार योजन भाग व बाकी र मध्यवा एक लाख, अयोतेर हजार योजन जेटला भागमा. अहीं दाक्षिणात्य नागकुमार देवोना चुमालीस लाख भवनो कह्यां छे. ते भवनो बहारथी गोळ, यावत् प्रतिरूप के अहीं जे स्थानमा दाक्षिणा पापर्यास नागकुमारोना भवनो का छे, ते स्थान लोकना अवश्य भागमा छे; तेमां पण मह दिंक नागकुमार देवो से छे, बावत् विहरे छे. अने अहीं मामकुमार नागकुमार राजा धरणेंद मोटी ऋद्धिबाळो, यावत् - प्रकाशतो परिवसे छे. ते परवेंद्र सां पुमालीस लाख भवनोना, छ हजार सामानिकोना, क्षेत्रीय प्रावत्रिंशोना, चार लोकपालोना, परिवार सहित छ अग्रमहिषीभोना, प्रण सभाओना सात प्रकारना सैन्योना, सात सेनापतिओोना, चोवीस हजार आत्मरक्षक देवोना अने बीजा पण घणा दाक्षिणात्य नागकुमार देवो तथा देवीओना आधिपत्यने, पालकपणाने यावत्- करतो विहेरे छेः " ( प्र० क०
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"नागकुमार इंद्र, नागकुमार राजा धरणेंद्रनो उपपात पर्वत 'घरणप्रभ' उचाइमां एक हजार योजन अने पेरायमा एक दजार गाड डे. पण वेना मूळ भागनो घेरावो एक हजार योजननो छे. अने यावत्-नागकुमारराज धरणेंद्रना लोकपाल कालवाल महाराजनो 'कालप्रभ' नामनो उपपात पर्वत उंचाइमां एक हजार योजन छे, यावत्-पूर्व प्रमाणे छे. एम ज लोकपाल संखपाळ, तथा भूतानंद अने यावद-बधा छोकपाखोना उपपात पर्वतो
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“नागेंद्र, नागकुमारराज परपने पांच युद्ध करनारों सैम्यो अने पांच लडनारा सेनापतिओ कलां छे, ते आ प्रमाणे :- पायदळ सैन्य यावत्रथानीक पदाति सेनानो नायक भद्रसेन पोडेखार सेनानी नेता अपरान यशोधर, हस्ती सेनानो खामी हस्तीराज सुदर्शन, महिष सेनानो सेनापति नीलकंठ अने रथानीकनो अधिपति आनंद छे.” (स्था० क० आ० पृ० ३५७).
" नागकुमारेंद्र, नागकुमारराज धरणेंइने छ अप महिषीओ कही छे, ते आ छे:- अल्ला, शक्रा, सतेरा, सौदामिनी, इंद्रा अने धनविद्युता. " ( स्था० क० आ० पृ० ४१८ ): - अनु०
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