Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinagama Prakashan Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ १२ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक ३.-उद्देशक १० ८. उ०-गोयमा ! बली णं वइरोयणिंदे, वइरोयणराया महि- ८. उ०—हे गौतम ! वैरोचनेंद्र, वैरोचनराज बलि मोटी डीए, जाव-महाणुभागे; से णं तत्थ तीसाए भवणावाससयसह- ऋद्धिवाळो छे. यावत्-महानुभाग छे; वळी ते त्यां त्रीस लाख स्साणं, सवीए सामाणियसाहस्सीणं, सेसं जहा चमरस्स तहा बलिस्स भवनोनो, तथा साठ हजार सामनिकोनो अधिपति छे. जेम चमर विणेयव्यं, नयरं-सातिरेगं केवलकप्पं जंबुद्दीवं भाणियव्वं, सेसं तं ' के संबंधे हकीकत कही तेम बलि विषे पण जाणवू. विशेष ए के, 'ते चेव गिरवसेसं णेयव्वं, नवरं नाणत्तं जाणियव्वं भवणेहिं, सामाण पोतानी विकुर्वण शक्तिथी आखा जंबुद्वीप करतां वधारे भागमा पोतानां रूपो भरी शके छे' बाकी बधुं ते ज प्रमाणे कहेवू. विशेष एहिं य. ए के, भवनो अने सामानिको विषे जूदाई जाणवी. सेवं भंते !, सेवं भंते ! त्ति तचे गोयमे वायुभूई जाव-विहरइ. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे; एम कही यावत्-त्रीजा गौतम वायुभूति अनगार विहरे छे. छोय तेओ वैरोचनो, अने तेओनो इंद्र ते वैरोचनेंद्र. तेमना निवास, उपपात पर्वतो, पांच लडायक सैन्यो, पांच अग्रमहिषीओ-नो उपयोगी अधिकार आ प्रमाणे छे: “कहिं णं भंते ! उत्तरिल्ला असुरकुमारा देवा परिवसंति ? गोयमा! जंबुद्दीवे "हे भगवन् । उत्तर दिशाना असुरकुमारो देवो कये स्थळे वसे छे ? दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए xx एत्थ हे गौतम ! जंबूद्वीप नामना द्वीपना मंदर-मेरू-पर्वतनी उत्तरे आ रत्नप्रभा णं उत्तरिल्लाणं असुरकुमाराणं देवाणं, देवीण य तीसं भवणावाससयसहस्सा पृथिवीमां (दाक्षिणात्य असुरकुमारोनां भवनोनी उत्तरे) अहीं, उत्तर भवंति त्ति अक्खायं. ते णं भवणा बाहिं वहा, अंतो चउरंसा; सेसं जहा दिशाना असुरकुमार देवो अने देवीओना त्रीस लाख (३०,००,०००) दाहिणिल्लाणं जाव-विहरति. बली इत्थ वइरोयणिंदे, वइरोयणराया परिवसइ भवनो कयां छे. तेओनो आकार बहारथी गोळ अने अंदरथी चोखंडो छे. काले, महानीलसरीसे, जाव-पभासेमाणे. से णं तत्थ तीसाए भवणावास- बाकीनो 'यावत्-विहरति' सुधीनो बधो वर्णक दाक्षिणात्य असुरकुमारोनी सयसहस्साणं, सहीए सामाणियसाहस्सीणं, तायत्तीसाए तायत्तीसगाणं, चउण्हं समान छे. अहीं वैरोचन इंद्र, वैरोचन राजा वली पण वसे छे. ते वर्णे लोगपालाणं, पंचण्डं अग्गमहिसोणं सपरिवाराणं, तिण्डं परिसाणं, सत्तण्हं काळो, महानीलमणीना जेवो, यावत्-प्रकाशतो छे. त्यां ते बलि राजा त्रीस अणियाणं, सत्तण्हं अणियाहीवईणं, चउण्हं सट्ठीणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं, लाख भवनोना, साठ हजार सामानिकोना, तेत्रीस त्रायस्त्रिंशोना, चारअण्णेसिं च बहूर्ण उत्तरिल्लाणं असुरकुमाराणं देवाण य, देवीण य आहेवचं, सोम, यम, वरुण, कुबेर-लोकपालोना, सपरिवार पांच-शुंभा, निशुंभा, पोरेवच्चं, जाव-कुब्वेमाणे विहरतिः” (प्र. क० आ० पृ० १०३). रंभा, निरंभा, मदना-अप्रमहिषीओना, त्रण पर्षदोना, सात-पदाति, घोडेखार, हस्ती, रथ, पाडा, नाट्य, गांधर्व,-अनीकोना; सात-महाद्रुम, महासौदाम, माल्यंकर, महालोहिताक्ष, किंपुरुष, महारिष्ट, गीतयशासेनापतिओना; बे लाख, चालीस हजार आत्मरक्षकोना अने बीजा घणा उत्तर दिशावासी असुरकुमार देवो, तथा देवीओना आधिपत्यने, पुरपतिपणाने, यावत्-करतो विहरे छे:” (क. आ० पृ. १०३). "बलिस्स वइरोयणिंदस्स, वइरोयणरन्नो रुयगिंदे उप्पायपव्वए मूले दस "वैरोचन इंद्र, वैरोचन राज बलीनो उपपात पर्वत रुचकेंद्र मूळमां दस सो बावीसे जोयणसए विक्खंभेणं पन्नत्ते, बलिस्स णं वइरोयणरन्नो सोमस्स एवं बावीस योजन पहोळो कहेलो छे, वैरोचनराज बलीना सोमनो उपपात पर्वत चेव,जहा चमरस्स लोगपालाणं तं चेव वलिस्स वि"(स्था०क०आ पृ०५५०). एवो ज छे. जे प्रमाणे चमरेंद्रना लोकपालोना उपपात पर्वतो कह्या तेम बलीना लोकपालोना पण जाणवा.” (स्था० क० आ• पृ० ५५०). "बलिस्स णं वइरोयणिंदस्स, वइरोयणरन्नो पंच संगामिया अणिया, पंच "वैरोचन इंद्र, वैरोचन राज बलीने पांच संग्राम करनारा सैन्यो अने संगामिया अणियाहिवई पण्णत्ता, तं जहाः-पायत्ताणिए, जाव-रह गए. पांच सांग्रामिक सेनाध्यक्षो कहां छः, ते आप्रमाणे:-पायदा, यावत्-रथानीक. महदुमे पायत्ताणियाहिवई, महासोदामे आसराया पीढाणियाहिवई, मा- पायदा-पाळा-सैन्यनो अधिपति महाद्रुम, पीठानीकनो नायक अश्वराज महाकरे हत्थिराया कुंजराणियाहिवई, महालोहिअक्ने महिसाणियाहिवई, किंपु. सौदाम, हस्ती सैन्यनो नायक हस्तिराज माल्यंकर, महीष सेनानो खामी महारिसे रहाणियाहिवईः" (स्था० क० आ० पृ० ३५७). लोहिताक्ष अने रथानीकनो अग्रगामी किंपुरुष छेः" (स्था० क०आ० पृ०३५७). "बलिप्स णं वइरोयर्णिदस्स, वइरोयणरन्नो पंच अग्गमहिसीओ पण्णताओ, "वैरोचन इंद्र, वैरोचन राज बलीने पांच अग्रमहिषीओ कही छे, ते आ तं जहाः-सुंभा, णिसुंभा, रंभा, पिरंभा, मयणा." (स्था०क०आ०पृ०३५७). प्रमाणे:-शुंभा, निशुंभा, रंभा, निरंभा अने मदना."(स्था०क आ पृ०३५७). आ पांचे अग्रमहिषीओना पूर्व भवथी आरंभी चालु जीवनना अंत सुधीना वर्णक माटे 'ज्ञाताधर्मकथा' (अं०६,श्रुत०२)ना बीजा वर्गमां पांच महिषीओने नामे पांच अध्ययनो छेः___“xx बलिस्स वइरोयाणिंदस्स, वइरोयणरण्णो अग्गमहिसीणं बीइए "वैरोचन इंद्र, वैरोचन राज बलीनी अग्रमहिषीओनो बीजो वर्ग कह्यो वग्गे." ( क. आ० पृ० १४७९.)xxx “जइ णं भंते । समणेणं भग- छे." (क. आ० पृ. १४७९.) "हे भगवन् ! श्रमण भगवंत महावया महावीरेणं जाव-संपत्तेणं, दोचस्स वग्गस्स उवक्खेवओ? एवं जाव- वीरे, यावत्-संप्राप्ते, बीजा वर्गनो केवी रीतीए प्रारंभ कर्यों छे ? ए प्रमाणे संपत्तेणं दो चस्स वग्गस्स प. अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहाः-सुभा, णिसुंभा, निश्चित छ के, श्रमण भगवंत महावीरे, यावत्-संप्राप्ते बीजा वर्गना पांच रंभा, णिरभार मदणा."-(क० आ० पृ० १५११-१३). अध्ययनो कह्यां छे, ते आ प्रमाणेः-शुंभा, निशुंभा, रंभा, निरंभा अने मदना." ( क.आ० पृ०१.११-१३). तेज बली इंद्रनो पांच सभाओ आदि बाकीनो बधो वर्णक लगभग चमरेंद्रनी तुल्य छे. तथा आ बन्ने इंद्रो अने बधा असुरकुमारो रक्त वस्त्रोने धारे छः-अनु० १. मूलच्छश्याः-गौतम ! बलिवैरोचनेन्द्रः, वैरोचनराजो महर्द्धिकः, यावत्-महानुभागः; स तत्र त्रिंशतां भवनावासशतसहस्राणाम् , षष्टीनां सामानिकसहस्रीणाम, शेषं यथा चमरस्य तथा बलेरपि नेतव्यम्, नवरम्-'सातिरेक केवलकल्पं जम्बूद्वीपम्' (इति) भणितव्यम्, शेषं तुबैटनिरवशेषं नेतव्यम्, नवरा-नानात्वं ज्ञातव्यं भुवनैः, सामानिकैश्च. तदेवं भगवन् !, तदेवं भगवन् ! इति तृतीयो गौतमो वायुभूतिर्यावत्-विहरति www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 ... 358