Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 23
________________ और सिद्धों द्वारा भाषण, उन्मेष-निमेषादि क्रिया-अक्रिया की प्ररूपणा ४३५, केवली द्वारा नरकपृथ्वी से लेकर ईषत्प्राग्भारापृथ्वी तथा अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक को जाननेदेखने की प्ररूपणा ४३६. __पन्द्रहवां शतक : गोशालकचरित प्राथमिक - ४४०, मध्य मंगलाचरण ४४२, ४४० श्रावस्तीनिवासी हालाहला का परिचय एवं गोशालक का निवास ४४२, गोशालक का छह दिशाचरों को अष्टांगमहानिमित्तशास्त्र का उपदेश एवं सर्वज्ञादि अपलाप ४४३, गोशालक की वास्तविकता जानने की गौतम स्वामी की जिज्ञासा, भगवान् द्वारा समाधान ४४५, गोशालक के माता-पिता का परिचय तथा भद्रा माता के गर्भ में आगमन ४४६, शरवण सन्निवेश में गोबहुल ब्राह्मण की गोशाला में मंखलि-भद्रा का निवास, गोशालक का जन्म और नामकरण ४४९, यौवनप्राप्त गोशालक द्वारा स्वयं मंखवृत्ति ४४८, गोशालक के साथ प्रथम समागम का वृतान्त : भगवान् के श्रीमुख से ४४९, विजय गाथापति के गृह में भगवत्पारणा, पंचद्रव्य प्रादुर्भाव, गोशालक द्वारा प्रभावित होकर भगवान् का शिष्य बनने का वृतान्त ४५१, द्वितीय से चतुर्थ मासखमण के पारणे तक का वृतान्त, भगवान् के अतिशय से पुनः प्रभावित गोशालक द्वारा शिष्यताग्रहण ४५३, तिल के पौधे को लेकर भगवान् को मिथ्यावादी सिद्ध करने की गोशालक की कुचेष्टा ४५७, वैश्यायन के साथ गोशालक की छेड़खानी, उसके द्वारा तेजोलेश्याप्रहार, गोशालकरक्षार्थ भगवान् द्वारा शीतलेश्या द्वारा प्रतिकार ४५९, भगवान् द्वारा तेजोलेश्या शमन का वृत्तान्त तथा गोशालक को तेजोलेश्याविधि का कथन ४६१, गोशालक द्वारा भगवान् के साथ मिथ्यावाद, एकान्त परिवृत्यपरिहारवाद की मान्यता और भगवान् से पृथक् विचरण ४६३, गोशालक को तेजोलेश्या की प्राप्ति, अहंकारवश जिनप्रलाप एवं भगवान् द्वारा स्ववक्तव्य का उपसंहार ४६५, भगवान् द्वारा अपने-गोशालक के-अजिनत्व का प्रकाशन सुन कर कुम्भारिन की . दूकान पर कुपित गोशालक का ससंघ जमघट ४६६, गोशालक द्वारा अर्थलोलुप वणिक्वर्ग-विनाशदृष्टान्त-कथनपूर्वक आनन्द स्थविर को भगवद्विनाशकथनचेष्टा ४६७, गोशालक के साथ हुए वार्तालाप का निवेदन, गोशालक के तप-तेज का निरूपण, श्रमणों को उसके साथ प्रतिवाद न करने का भगवत्संदेश ४७४. गोशालक के साथ धर्मचर्चा न करने का आनन्दस्थविर द्वारा भगवदादेश-निरूपण ४७८, भगवान् के समक्ष गोशालक द्वारा अपनी ऊटपटांग मान्यता का निरूपण ४७८, भगवान् द्वारा गोशालक को चोर के दृष्टान्त-पूर्वक स्वभ्रान्तिनिवारण-निर्देश ४८४, भगवान् के प्रति गोशालक द्वारा अवर्णवाद मिथ्यावाद ४८५, गोशालक को स्वकर्त्तव्य समझाने वाले सर्वानुभूति अनगार का गोशालक द्वारा भस्मीकरण ४८६, गोशालक द्वारा भगवान् के किये गए अवर्णवाद का विरोध करने वाले सुनक्षत्र अनगार का समाधिपूर्वक मरण ४८७, गोशालक को [२०]

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