Book Title: Agam 04 Samvayang Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar View full book textPage 6
________________ आगम सूत्र ४, अंगसूत्र- ४, 'समवाय ' समवाय / सूत्रांक लाख) योजन विस्तीर्ण कहा गया है । सौधर्मेन्द्र का पालक नाम का यान (यात्रा के समय उपयोग में आने वाला पालक नाम के आभियोग्य देव की विक्रिया से निर्मित विमान) एक लाख योजन आयाम-विष्कम्भ वाला कहा गया है। सर्वार्थसिद्ध नामक अनुत्तर महाविमान एक लाख योजन आयाम- विष्कम्भ वाला कहा गया है। आर्द्रा नक्षत्र एक तारा वाला कहा गया है। चित्रा नक्षत्र एक तारा वाला कहा गया है। स्वाति नक्षत्र एक तारा वाला कहा गया है । इसी रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति एक पल्योपम कही गई है। कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति एक पल्योपम कही गई है। असुरकुमार देवों की उत्कृष्ट स्थिति कुछ अधिक एक सागरोपम कही गई है। असुरकुमारेन्द्रों को छोड़कर शेष भवनवासी कितनेक देवों की स्थिति एक पल्योपम कही गई है। कितनेक असंख्यात वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों की स्थिति एक पल्योपम कही गई है। कितनेक असंख्यात वर्षायुष्क गर्भोपक्रान्तिक संज्ञी मनुष्यों की स्थिति एक पल्योपम कही गई है। । वाणव्यन्तर देवों की उत्कृष्ट स्थिति एक पल्योपम कही गई है। ज्योतिष्क देवों की उत्कृष्ट स्थिति एक लाख वर्ष से अधिक एक पल्योपम कही गई है। सौधर्मकल्प में देवों की जघन्य स्थिति एक पल्योपम कही गई है । सौधर्मकल्प में कितनेक देवों की स्थिति एक सागरोपम कही गई है। ईशानकल्प में देवों की जघन्य स्थिति कुछ अधिक एक पल्योपम कही गई है। ईशानकल्प में कितनेक देवों की स्थिति एक सागरोपम कही गई है । जो देव सागर, सुसागर, सागरकान्त, भव, मनु, मानुषोत्तर और लोकहित नाम के विशिष्ट विमानों में देव रूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम कही गई है । वे देव एक अर्धमास में (पन्द्रह दिन में) आन-प्राण अथवा उच्छ्वास- निःश्वास लेते हैं । उन देवों के एक हजार वर्ष में आहार की ईच्छा उत्पन्न होती है । कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो एक मनुष्य भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे । समवाय- १ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् (समवाय) आगमसूत्र - हिन्द-अनुवाद" Page 6Page Navigation
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