Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 15
________________ 编写事新编写写写写写编编编写 145 सम्पादकीय 'अध्यात्म' कर्म-कषायों के कल्मष को प्रक्षालित करने में अद्भुत शक्ति रखता है, अस्तु यह जीवन प्रदायिनी संजीवनी है। लेकिन आज मानव इस संजीवनी को छोड़कर भौतिक सम्पदा के पीछे * भाग-दौड़ कर रहा है। उसकी यह भाग-दौड़ वैसी ही है जैसे कोई पारस पत्थर को महत्त्व न देता हुआ * स्वर्ण को पाने में अपनी सुध-बुध खो बैठता है । उसका यह निरर्थक प्रयास मृगमरीचिकावत् है जहाँ कुछ पाना नहीं होता है अपितु समस्त ऊर्जा व्यर्थ गंर्त में चली जाती है । मानव जीवन जो परम पुरुषार्थ से मिला है वह ऐसी ही भाग-दौड़ में निरर्थक बीतता चला जाए तो इससे बड़ी भूल और क्या हो सकती है? मानव यह भूल अपनी सुप्त चेतना के कारण आज से नहीं, युगों-युगों से करता आ रहा है और इस 4 प्रकार चतुर्गति में भ्रमण - परिभ्रमण करता हुआ दुःखी व संतप्त है। 卐 'अध्यात्म' सुप्त चेतना को जाग्रत करने का माध्यम है। 'जैन अध्यात्म' जैनागमों में गुम्फित है । जैनागम श्रमण भगवान महावीर स्वामी की विमलवाणी का संकलित रूप है जिसे गणधरों ने सूत्रबद्ध * किया है। जैनागमों के अध्ययन-अध्यापन से जीवन में प्रच्छादित अज्ञान और मोहरूपी गहन अन्धकार * तिरोहित होता है तथा आत्मा का प्रकाश प्रदीप्त होता है। 'समवायांग सूत्र' जैनागम के बारह अंगों में चतुर्थ अंग के रूप में परिगणित है । सम, अवाय और इंग इन तीन शब्दों से मिलकर बना समवायांग का अर्थ - अभिप्राय है - प्रतिनियत संख्या वाले पदार्थों ॐ का सम-सम्यक् प्रकार से अवाय अर्थात् निश्चय या परिज्ञान कराने वाला अंग । जैनागमों में समवायांग सूत्र का वैशिष्ट्य बिम्बित है। इस सूत्र के माध्यम से जैनधर्म-दर्शन व संस्कृति की प्राचीनता, ऐतिहासिकता को सरलता व सहजता के साथ समझा जा सकता है। इसमें भगवान द्वारा प्ररूपित तत्त्व विज्ञानादि विविध विषयों के साथ एक से लेकर सौ स्थानक - समवायों में तथा कुल 677 सूत्रों में प्रभावक रूप से सविस्तार वर्णित है। समवायांग सूत्र में समवाय- स्थानकों में संख्यापरक पदार्थों का सुन्दर ढंग से विवेचन हुआ है। जैसे - एकस्थानक - समवाय में एक संख्या वाले पदार्थों का विवेचन, द्विस्थानक - समवाय में दो संख्या वाले * पदार्थों का विवेचन आदि-आदि। यहाँ समस्त विवेचन या कथन 'नय' की अपेक्षा से प्रतिपादित है । उदाहरण के लिए प्रथम स्थानक - समवाय में जीव, अजीव आदि तत्त्वों के प्रतिपादन में आत्मा, अनात्मा, दण्ड, अदण्ड, क्रिया, अक्रिया, लोक, अलोक, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, पुण्य, पाप, बन्ध, आस्रव, संवर, वेदना, निर्जरा आदि को अनेक होते हुए भी संग्रहनय की दृष्टि से एक-एक बताया गया है। इसी प्रकार एक-एक लाख योजन वाले जम्बूद्वीप, पालक, यान, विमान, एक-एक तारा वाले तीन नक्षत्र - आर्द्रा, चित्रा, 事 // vii // 蛋蛋蛋与编写写与编写写写写写与编写纸与编写纸与纸与纸纸

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