Book Title: Agam 03 Thanam Angsutt 03 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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तइयं ठाणं - उद्देसो-३
४१
तं जहा-जंगिए भंगिए खोमिए कम्पति निगंथाण वा निग्गंधीण वा तओ पायाई धारित्तए वा परिहरित्तए वा तं जहा लाउयपादे वा दारूपादे वा मट्टियापादे वा ।१७०1-170 (१८४) तिहिं ठाणेहिं घस्थं घरेजा तं जहा-हिरिपत्तियं गंछापत्तियं परीसहवत्तियं
१७१1-171 (१८५) तओ आयरक्खा पन्नत्ता तं जहा-धम्मयाए पडिचोयणाए पडिचोएता भवति तुसिणीए वा सिया उद्वित्ता वा आताए एगंतमंतमवक्कमेजा निग्गंथस्स नं गिलायमाणस्स कप्पंति तओ वियडदतीओ पडिग्गाहित्तते तं जहा-उक्कोसा मज्झिमा जहण्णा।१७२1-172
(१८६) तिहिं ठाणेहिं समणे निगंथे साहप्मियं संभोगियं विसंभोगियं करेमाणे नातिक्कमति तं जहा-सयं वा दटुं सड्ढयस्स वा निस्सम तच्चं मोसं आउदृति यउत्थं नो आउदृति ।१७३1-173
(१८७) तिविधा अणुण्णा पन्नता तं जहा-आयरियत्ताए उवज्झायत्ताए गणित्ताए तिविधा समगुण्णा पन्नत्ता तं जहा-आयरियत्ताए उवायत्ताए गणित्ताए तिविधा उवसंपया [पन्नत्ता तं जहा-आयरियत्ताए उक्जायत्ताए गणित्ताए] तिविधा विजहणा [पन्नत्ता तं जहा-आयरिवत्ताए उवज्झायत्ताए गणिताए] १७४1-174
(१८८) तिविहे ववणे पण्णते तं जहा-तब्बयणे तदण्णवयणे नोअवयणे तिविहे अवधणे प. तं जहा-नोतव्ययणे नोतदण्णवयणे अवयणे तिविहे मणे पण्णत्ते तं जहा-तम्पणे तयण्णमणे नोअमणे तिविहे अमणे पण्ण्ते तं जहा-नोतप्मणे नोतयण्णमणे अमणे ।१७५/- 175
(१८९) तिहिं ठाणेहिं अप्पयुट्ठीकाए सिया तं जहा- तसि च णं देसंसि वा पदेसंसि वा नो बहवे उइदगजोणिवा जीवा य पोग्गला य उदगताते वककति विउककमंति चयंति उपवनति देवा नागा जस्खा भूता नो सम्भमाराहित्ता भवंति तत्य समुट्ठियं उदगपोग्गलं परिणतं वासितकामं अण्ण देसं साहरंति अब्धयद्दलगं च णं सपुद्वितं परिणतं वासितुकामं वारकाए विधणति इच्चेतेहिं तिहिं ठाणेहि अप्पटिगए सिया तिहिं टाणेहिं महावुट्ठीकाए सिया तं जहा-तरिंस च नं देसंसि वा पदेसंसि वा बहवे उदगजोणिया जीवा य पोग्गला व उदगताए वक्कमति विउक्कमति चयंति उववजंति देवा नागा जक्खा भूता सम्पमाराहिता भवंती अन्नत्य समुट्टितं उदगपोग्गलं परिणय वासिउकाम त देस साहरंति अभवद्दलगं च नं समुद्वित परिणय वासितुकामं नो याउआए विधुणति इच्चेतेहि तिहि टाणेहि महाबुट्टिकाए सिया
१७६|-176 (१९०) तिहिं ठाणेहिं अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु इच्छेन्ज पाणुसं लोगं हव्वपागच्छि त्तए नो चैव णं संचाएति हव्यमागच्छित्तए तं जहा-अहणोववण्णे देवे देवलोगेस दिव्वेस कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोववण्णे से न माणुस्सए कामभोगे नो आढाति नो परियाणाति नो अटुं बंधति नो नियाणं पगरेति नो ठिइपकप्पं पगरेति अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्येसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोववण्णे तस्स णं माणुस्सए पेमे वोच्छिपणे दिव्वे संकंते भवति अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्येसु कामभोगेसु पुच्छिते गिद्धे मढिते अन्झोपवण्णे तस्स णं एवं भवति-इण्हि गच्छं मुहुत्तं गच्छं तेणं कालेणमप्पाउया मणुस्सा कालधामुणा संजुत्ता भवंति इच्चेतेहिं तिहिं ठाणेहिं अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु
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