Book Title: Agam 03 Thanam Angsutt 03 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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तहयं द्राणं उद्देसो-४
(२२९) तओ गारवा पन्नत्ता तं जहा इड्ढीगारवे रसगारवे सातागारवे ॥ २१५/- 216 ( २३० ) तिविहे करणे पण्णत्ते तं जहा धम्मिए करणे अधम्मिए करणे धम्पियाधम्पिए करणे | २१६ | - 216
( २३१) तिविहे भगवता धप्पे पण्णत्ते तं जहा सुअघिज्झते सुज्झाइते सुतवस्सिते जया अधिज्झतं भवति तदा सुज्झाइतं भवति जया सुज्झाइतं भवति तदा सुतवस्सितं भवति से सुअधिज्झते सुज्झाइते सुतवस्सिते सुयक्खाते णं भगवता धम्मे पण्णत्ते |२१७1-217
( २३२) तिविधा वावत्ती पन्नत्ता तं जहा - जाणू अजाणू वितिमिच्छा तिविघा अज्झोबबजजणा [पन्नत्ता तं जहा - जाणू अजाणू वितिगिच्छा ] तिविधा परियावज्रणा [पन्नत्ता तं जहा - जाणू अजाणू वितिगिच्छा | २१८1-218
(२३३) तिविधे अंते पण्णत्ते तं जहा लोगंते वेयंते समयंते । २१९/- 219
( २३४ ) तओ जिणा पन्नता तं जहा ओहिनाणजिणे मणपजवनाणजिणे केवलनाणजिणे, तओ केवली पन्नत्ता तं जहा - ओहिनाणकेवली भणपजवनाणकेवली केवलनाणकेवली तओ अरहा प तं जहा ओहिनाणअरहा मणपजवनाणअरहा केवलनाणअरहा
४९
२२०/-220
( २३५) तओ लेसाओ दुभिगंधाओ पन्नत्ताओ तं जहा कण्हलेसा नीललेसा काउलेसा तओ लेसाओ सुभिगंधाओ पन्नताओ तं जहा- तेउलेसा पम्हलेसा सुक्कलेसा तओ लेसाओ-दोग्गतिगामिणीओ [संकिलिड्डाओ अमणुण्णाओ अविसुद्धाओ अम्पसत्याओ सीतलुक्खाओ पन्नत्ताओ तं जहा- कण्हलेसा नीललेसा काउलेसा] तओ लेसाओ-सोगति - गामिणीओ असंकिलिट्ठाओ मणुष्णाओ विसुद्धाओ पसत्याओ] निघुहाओ पन्नत्ताओ तं जहातेउलेसा पम्हलेसा सुक्कलेसा | २२१1-221
( २३६ ) तिविहे मरणे पन्नत्ते तं जहा बालमरणे पंडियमरणे बालपंडियमरणे बालमरणे तविहे पण्णत्ते तं जहा-ठितलेस्से संकिलिट्टेलेस्से पज्जवजातलेस्से पंडियमरणे तिविहे पण्णत्ते तं जहा-ठितलेस्से असंकिलिट्ठलेस्से पजवजातलेस्से बालपंडियमरणे तिविहे पण्ण- ते तं जहा-ठितलेस्से असंकिलिट्ठिलेस्से अपजवजातलेस्से | २२२ । -222
( २३७ ) तओ ठाणा अव्यवसितरस अहिताए असुभाए अखमाए अणिस्सेसाए अणाणुगामियत्ताए भवंति तं जहा से णं पुंडे भवित्ता अगाराओ अणवारियं पव्वइए निग्गंथे पावयणे संकिते कंखिते वितिगिच्छेते भेदसमावण्णे कलुससमावण्णे निरगंधं पावयणं नं. सद्दहति नो पत्तियति नो रोएति तं परिस्सहा अभिजुंजिय- अभिजुंजिय अभिभवंति नो से परिस्सहे अभिजुंजिय- अभिजुंजिय अभिभवइ से णं मुंडे भविता अगाराओ अणगारितं पव्वइए पंचहिं महव्वएहिं संकिते [कंखिते चितिगिच्छिते भेदसमावण्णे] कलुससमावण्णे पंच महब्बताई नो सद्दहति नो पत्तियति [ नो रोहति तं परिस्सहा अभिजुंजिय- अभिजुंजिय अभिभवंति | नो से परिस्सहे अभिजुंजिय- अभिजुंजिय अभिभवति से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए छहिं जीवणिकाएहिं [संकिते कंखिते वितिगिच्छिते भेदसमावण्णे कलुससमावणे छ जीवणिकाए नो सद्दहति नो पत्तियति नो रोहति तं परिस्सहा अभिर्जुजिय
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