Book Title: Agam 03 Thanam Angsutt 03 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 57
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८ ठाणं - ३/४/२२६ राणं तओ सरीरगा प.-वेउविए तेयए कम्मए एवं-सव्वेसि देवाणं, पढविकाइ- याणं तओ सरीरगा प.-ओरालिए तेयए कम्मए एवं-वाउकाइयवजाणं जाव चउरिदियाणं ।२०७१-207 (२२२) गुरुं पड्डुच्च तओ पडिणीया पनत्ता तं जहा-आयरियपडिणीए उवज्झायपडिणीए घेरपडिणीए गतिं पडुच्च तओ पडिणीया पनत्ता तं जहा-इहलोगपडिणीए परलोगपडिणीए दुहओलोगपडिणीए समूहं पड़च्च तओ पडिणीया पन्नत्ता तं जहा-कुलपडिणीए पणपडिणीए संघपडिणीए अणुकंपं पडुध तओ पहिणीया पन्नता तं जहा-तदस्सिपडिणीए गिलाणपडिणीए सेहपडिणीए भावं पड़च्च तओ पडिणीया पन्नत्ता तं जहा-णाणपडिणीए दसणपडिणीए चरित्तपडिणीए सुयं पडुच्छ तओ पडिणीया पन्नता तं जहा-सुत्तपडिणीए अस्थपडिपीए तदुभयपडिणीए ।२०८1-208 (२२३) तओ पितियंगा पन्नत्ता तं जहा-अट्ठी अट्टिभिंजा केसमंसुरोमणहे तओ माउयंगा पन्नत्ता तं जहा मंसे सोणिते मत्युलिंगे ।२०११-209 (२२४) तिहिं ठाणेहि समणे निग्गंथे महानिज्जरे महापजवसाणे भवति तं जहा कया णं अहं अयं वा दहुर्य वा सुयं अहिनिस्सामि कया णं अहं एकल्लविहारपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरिस्सामि कया णं अहं अपच्छिममारणंतियसलेहणा-झूसणा-झूसिते भत्तपाणपडियाइकिखते पाओवगते कालं अणवकखमाणे विहरिस्सामि एवं समणसा सवयसा सकायसा पागडेमाणे समणे निगंथे महानिज़रे महापज्जवसाणे भवति तिहिं ठाणेहिं समणोवासए महाणिजरे महापजवसाणे भवति तं जहा कया णं अहं अप्पं वा बहुयं वा परिग्गहं परिचइस्सामि कया णं अहं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारितं पव्वइस्सामि कया णं अहं अपच्छिपपारणं. तियसलेहणा-असणा-झूसिते भतपाणपडियाइक्खिते पाओवगते कालं अणवकंखमाणे विहरिस्सामि एवं समयसा सवयसा सकायसा पागडेमाणे समणोवासए महानिजरे महापजवसाणे मवति ।२१०l-210 (२२५) तिविहे पोग्गलपडियाते पण्णते तं जहा-परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गलं पप्प पडिहणिज्जा लुक्खत्ताए वा पडिहणिज्जा लोगते वा पडिहान्निज्जा ।२११1-11 (२२६) तिविहे चक्खू पण्णते तं जहा-एगचक्खू बिचक्खू तिचखू छउमत्ये णं मणुस्से एगचक्खू देवे विचक्षू तहारुवे समणे वा माहणे वा उप्पण्णनाण दंसणधरे तिचक्षुत्ति वत्तव्यं सिया ।२१२२-212 (२२७) तिविधे अभिसमागमे पण्णते तं जहा-उड्ड अहं तिरियं जया णं तहारुवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पजति से णं तप्पढमताए उड्ढभिसमेति ततो तिरियं ततो पच्छा अहे अहोलोगे णं दुरभिगमे पण्णते समणाउसो २१३ -213 (२२८) तिविधा इट्टी पन्नत्ता तं जहा-देविड्ढी राइड्ढी गणिड्ढी देविड्ढी तिविहा पन्नत्ता तं जहा-विमाणिड्ढी विगुचणिड्ढी परियारणिड्डी अहवा-देविड्ढी तिविहा पन्नत्तां तं जहा-सचित्ता अचित्ता मीसिता राइड्ढी तिविधा पन्नत्ता तं जहा-रण्णो अतियाणिड्ढी रण्णो निजाणिड्ढी रण्णो बल-बाहण-कोस-कोट्ठागारिड्ढी अहवा-राइड्ढी तिविहा प. तं जहा-सचित्ता अचित्ता मीसिता गणिड्ढी तिविहा पन्नत्ता तं जहा-नाणिड्ढी दंसणिड्ढी चरितिड्ढी अहवा-गणिड्ढी तिविहा पन्नत्ता तं जहा-सचित्ता अचित्ता मीसिता ।२१४।-214 For Private And Personal Use Only

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