Book Title: Agam 03 Thanam Angsutt 03 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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पंचमं यणं उद्देसो-३
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१०७
या वणसइकाइया ओराला तसा पाणा, उड्ढलोगे णं पंच वायरा पन्नता तं जहा - [पुढविकाइया आउकाइया वाउकाइया वणस्सइकाइया ओराला तसा पाणा ] तिरियलोगे णं पंच वायरा पन्नत्ता तं जहा- एगिंदिया ( वेइंदिया तेइंदिया चउरिदिया ] पंचिदिया पंचविहा वायरतेउकाइया पन्नत्ता तं जहा- इंगाले जाले मुम्मुरे अच्ची अलाते पंचविधा बादरवाउकाइया पन्नत्ता तं जहा - पाईणवाते पडीणवाते दाहिणवाते उदीणवाते विदिसवाते पंचविधा अचित्ता वाउकइया पन्नत्ता तं जहा अक्कते धंते पीलिए सरीराणुगते समुच्छिमे १४४४/-444
(४८३) पंच निग्गंथा पन्नत्ता तं जहा- पुलाए बउसे कुसीले निग्गंथे सिणाते, पुलाए पंचविहे पन्नत्ते तं जहा - नाणपुलाए दंसणपुलाए चरित्तपुलाए लिंगपुलाए अहासुहुमपुलाए नामं पंचमे, बउसे पंचविधे पन्नत्ते णं जहा - आभोगवउसे अणाभोगवउसे संवुडवउसे असंवुडबउसे अहासुहुमबउसे नामं पंचमे, कुसीले पंचविधे पन्नत्ते तं जहा - नाणकुसीले दंसणकुसीले चरित्तकुसीले लिंगकुसीले अहासुहुमकुसीले नाम पंचमे, निग्गंथे पंचविहे पण्णत्ते तं जहा - पढमसमयनिगंधे अपढमसमयनिगंधे चरिमसमयनिगंधे अचरिमसमयनिगंथे अहासुमनिगं नामं पंचमे, सिणाते पंचविधे पण्णत्ते तं जहा - अच्छवी असबले अकम्पसे, संसुद्धनाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली, अपरिस्साई (४४५) - 445
(४८४) कप्पति निग्गंधाण वा निग्गंथीण वा पंच वत्थाई धारितए वा परिहरेत्तए वा तं जहा- जंगिए भंगिए साणए पोत्तिए तिरिडपट्टए नामं पंचमए कष्पति निग्गंथाण वा निग्गंथी वा पंचरहरणाई धारितए वा परिहरेत्तए वा तं जहा- उण्णिए उट्टिए साणए पच्चापि - चिए मुंजापिचिए नामं पंचमए १४४६ | -446
(४८५) धम्मण्णं चरमाणस्स पंच निस्साट्ठाण पन्नत्ता तं जहा छक्काया गणे राया गाहावती सरीरं । ४४७ | -447
(४८६) पंच निहिं पन्नत्ता तं जहा - पुत्तनिही मित्तनिही सिप्पनिही धणनिही धण्णनिही | ४४८ 1-448
(४८७) पंचविहे सोए पन्नत्ता तं जहा- पुढविसोए आउसोए तेउसोए मंतसोए दंभसोए १४४९ | 449
( ४८८ ) पंच ठाणाई छउमत्थे सव्वभावेणं न जाणति न पासति तं जहा धम्मस्थिकार्य अधम्मत्थिकायं आगासत्धिकायं जीवं असरीरपडिबद्धं परमाणुपोग्गलं एयाणि चेव उप्पन्ननाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली सव्वभावेणं जाणति पासति तं जहा - धम्मत्थिकार्य अधम्पत्थिकावं आगासत्धिकायं जीवं असरीरपडिवद्धं परमाणुपोग्गलं । ४५० -450
( ४८९ ) अधेलोगे णं पंच अनुत्तरा महतिमहालया महाणिरया पन्नत्ता तं जहा-काले महाकाले रोए महारोरूए अप्पतिट्ठाणे उडूढलोगे णं पंच अनुत्तरा महतिमहालया महाविमाणापन्नत्ता तं जहा - विजये वेजयंते जयंते अपराजिते सय्यद्धसिद्धे | ४५१ । -451
( ४९० ) पंच पुरिसजाया पन्नता तं जहा-हिरिसत्ते हिरिमणसते चलसत्ते धिरसत्ते उदयणसत्ते । ४५२। -452
(४९१) पंच मच्छा पन्नत्ता तं जहा अनुलोतचारी पडिसोतचारी अंतचारी मज्झचारी सव्वचारी एवामेव पंच भिक्खागा पन्नता तं जहा- अनुसोतचारी पडिसोतचारी अंतचारी
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