Book Title: Agam 03 Thanam Angsutt 03 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 117
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८ टाणं - ५/३/४१२ मज्झचारी सव्वचारी १४५३।-453 (४९२) पंच वणीमगा पन्नता तं जहा-अतिहिवामगे किवणवणीमगे माहण वणीमगे सावीमगे समणवर्णीमगे १४५४|-454 (४९३) पंचहिं ठाणेहिं अचेलए पसत्ये भवति तं जहा-अप्पपडिलेहा लाघविए पसत्ये रूवे वेसासिए तवे अणुण्णाते विउले इंदियनिग्गहे १४५५। -455 (४९४) पंच उक्कला पन्नता तं जहा-दंडुक्कले रज्जुक्कले तेणुक्कले देसुक्कले सब्बुक्कले ।४५६।-456 (४९५) पंच समितीओ पन्नताओ तं जहा-इरियासमिती भासासमिती एसणासमिती आवाणभंड-मत्त- निखेवणासमिती उच्चार-पासवण-खेल-सिंधाणजल्ल-पारिठावणिया समिती ।४५७)-457 (४९६) पंचविधा संसारसमावण्णया जीया पन्नत्ता तं जहा-एगिदिया विइंदिया तेइंदिया चउरिदिया पंचिदिया] एगिंदिया पंचपतिया पंचागतिया पन्नता तं जहा-एगिदिए एगिदिएसु उववजमाणे एगिदिएहितो वा विइंदिएहिंतो वा तेइंदिएहितो वा चउरिदिएहितो वा] पंचिदिएहिंतो वा उववज्जेजा से चेव णं से एगिदिए एगिंदिवत्तं विप्पजहमाणे एगिदियत्ताए वा वेइंदियत्ताए तेइंदियत्ताए वा चउरिदियत्ताए वा] पंचिंदियत्ताए वा गच्छेना वेईदिया पंचगतिया पंचागतिया एवं वेव एवं जाव पंचिंदिया पंचगतिया पंचागतिया पन्नत्ता तं जहा-पंचिंदिए जाव गच्छेना पंचविधा सव्वजीवा पन्नत्ता तं जहा कोहकसाई माणकसाई माया- कप्साई लोमकसाई अकसाई अहवा-पंचविधा सव्यजीवा पन्नत्ता तं जहा नेरइया तिरिक्ख- जोणिया मणुस्सा देवा सिद्धा ।४५८1-458 (४९७) अह भंते कल-मसूर-तिल-मुगण-मास-निफ्फाव-कुलत्थ-आलिसंदग-सतीणपलिमंथगाणं-एतेसि णं धन्नाणं कुट्ठाउत्ताणं [पल्लाउत्ताणं मंचाउत्ताणं मालउत्ताणं ओलि- ताण लित्ताणं लंछियाणं मुद्दियाणं पिहिताणं] केवइयं कालं जोणी संचिट्ठति गोयमा जहण्णेणं अंतोमहत्तं उनकोसेण पंच संवच्छराई तेण परं जोणी पमिलायति तेण परं जोणी पविद्धंसति तेण पर जोणी विद्धंसति तेण परं बीए अबीए भवति तेण परं जोणीवोच्छेदे पन्नते ।४५९:459 (४९८) पंच संवच्छरा पन्नत्ता तं जहा-नरखतसंवच्छरे जुगसंवच्छो पमाणसंवच्छरे लक्यणसंवच्छरे सणिंचरसंवच्छरे जुगसंवरच्छरे पंचविहे पन्नत्ते तं जहा-चंदे चंदे अभिवड्ढिते चंदे अभिवड्ढिते चेव पमाणसंवच्छरे पंचविहे पण्णत्ते तं जहा-नक्खते चंदे उऊ आदिच्चे अभिवड्ढिते लक्खणसंवच्छरे पंचविहे पण्णत्ते तं जहा-1४६०|-460 (४९९) सपगं नक्खत्ताजोगं जोयंति समगं उदू परिणमंति नबुण्हं नातिसीतो बहूदओ होति नरवत्तो ॥३५11-1 (५००) ससिसगलपुण्णमासी जोएइ विसमचारिनक्खत्ते कडुओ बहूदओ वा तमाहु संवच्छां वंदं ॥३६॥-2 (५०१) विसमं पवालिणो परिणमंति अणुसु देति पुष्फफलं वासं न सम्म वासति तमाहु संवच्छरं कम्म ||३७|1-3 (५०२) पुढविदगाणं तु रसं पुष्फफलाणं तु देइ आदियो अप्पेणवि वासेणं समं निप्फज्रए सासं ||3८11-4 For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170