Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Mool Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman
Publisher: Global Jain Agam Mission
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सुयगडांग सूत्र - पढमो सुयखंधो बीअं अज्झयणं
वेयालीयं
पढमो उद्देसो
संबुज्झह किं ण बुज्झह, संबोही खलु पेच्च दुल्लहा । णो हूवणमंति राइओ, णो सुलभं पुणरावि जीवियं ॥ डहरा वुड्ढा य पासहा, गब्भत्था वि चयंति माणवा । सेणे जह वट्टयं हरे, एवं आउखयम्मि तुट्टइ ||
२
मायाहिं पियाहिं लुप्पइ, णो सुलहा सुगई मे पेच्चओ |
एयाइं भयाइं पेहिया, आरंभा विरमेज्ज सुव्वए || । जमिणं जगई पुढो जगा, कम्मेहिं लुप्पंति पाणिणो ।
सयमेव कडेहिं गाहइ, णो तस्स मुच्चे अपुट्ठवं || ५ देवा गंघव्व रक्खसा, असुरा भूमिचरा सिरीसिवा ।
राया णरसेहि-माहणा, ठाणा ते वि चयंति दुक्खिया || ६ कामेहि य संथवेहि य, गिद्धा कम्मसहा कालेण जंतवो ।
ताले जह बंधणच्चुए, एवं आउखयम्मि तुट्टइ ॥ जे यावि बहुस्सुए सिया, धम्मिय माहण भिक्खुए सिया । अभिणूमकडेहिं मुच्छिए, तिव्वं से कम्मेहिं किच्चइ ॥ अह पास विवेगमुट्ठिए, अवितिण्णे इह भासइ धुवं । णाहिसि आरं कओ परं, वेहासे कम्मेहिं किच्चइ || जइ वि य णिगिणे किसे चरे, जइ वि य भुजिय मासमंतसो | जे इह मायाइ मिज्जइ, आगंता गब्भायऽणंतसो ॥ पुरिसोरम पावकम्मुणा, पलियंतं मणुयाण जीवियं ।
सण्णा इह काममुच्छिया, मोहं जंति णरा असंवुडा || ११ | जययं विहराहि जोगवं, अणुपाणा पंथा दुरुत्तरा ।
अणुसासणमेव पक्कमे, वीरेहिं सम्मं पवेइयं || १२ विरया वीरा समुट्ठिया, कोहाकायरियाइपीसणा |
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