Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Mool Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman
Publisher: Global Jain Agam Mission

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Page 48
________________ १ ४ 19 ८ 18 १० ११ सुयगडांग सूत्र - पढमो सुखंधो णिव्वुडे कालमाकंखी, एवं केवलिणो मयं ॥ त्ति बेमि ॥ || एगारसमं उज्झयणं समत्तं ॥ बारसमं अज्झयणं समोसरणं चत्तारि समोसरणाणिमाणि, पावाउया जाई पुढो वयंति । किरियं अकिरियं विणयं ति तइयं, अण्णाणमाहंसु चउत्थमेव ॥ अण्णाणिया ता कुसला वि संता, असंथुया णो वितिगिच्छतिण्णा अकोविया आहु अकोविएहिं, अणाणुवीईति मुसं वयंति ॥ सच्चं असच्चं इति चिंतयंता, असाहु साहु त्ति उदाहरंता । जेमे जणा वेणइया अणेगे, पुट्ठा वि भावं विणइंसु णाम || अणोवसंखा इति ते उदाहु, अट्ठे स ओभासइ अम्ह एवं । लवावसकी य अणागएहिं णो किरियमाहंसु अकिरियवाई ॥ सम्मिस्सभावं च गिरा गहीए, से मुम्मुई होइ अणाणुवाई | इमं दुपक्खं इममेगपक्खं, आहंसु छलायतणं च कम्मं ॥ ते एवमक्खंति अबुज्झमाणा, विरूवरूवाणि अकिरियवाई । मायइत्ता बहवे मणूसा, भमंति संसारमणोवदग्गं ॥ लोए ॥ णाइच्चो उदेइ ण अत्थमेइ, ण चंदिमा वड्ढइ हायइ वा । सलिला ण संदति ण वंति वाया, वंझे णियत्ते कसिणे हु जहाहि अंधे सह जोइणा वि, रुवाइं णो पस्सइ हीणणेत्ते । संतंपि ते एवमकिरियवाई, किरियं ण पस्संति णिरुद्धपण्णा ॥ संवच्छरं सुविणं लक्खणं च णिमित्त देहं उप्पाइयं च । अट्ठगमेयं बहवे अहित्ता, लोगंसि जाणंति अणागयाई ॥ के णिमित्ता तहिया भवंति, केसिंचि तं विप्पडिएइ णाणं । ते विज्जभावं अणहिज्जमाणा, आहंसु विज्जापलिमोक्खमेव ॥ ते एवमक्खति समिच्च लोगं, तहा तहा समणा माहणा य । 44

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