Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Mool Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman
Publisher: Global Jain Agam Mission
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सुयगडांग सूत्र - बीओ सुयखंधो
इह खलु पंच महब्भूया जेहिं णो विज्जइ किरिया इ वा अकिरिया इ वा सुकडे इ वा दुक्क इ वा कल्लाणे इ वा पावए इ वा साहू इ वा असाहू इ वा सिद्धि इ वा असिद्धि इ वा णिरए इ वा अणिरए इ वा अवि यंतसो तणमायमवि ।
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तं च पदुद्देसेणं [पिहुद्देसेणं] पुढोभूयसमवायं जाणेज्जा, तं जहा- पुढवी एगे महब्भू, दोच्चे महब्भूए, तेऊ तच्चे महब्भूए, वाऊ चउत्थे महब्भूए, आगासे पंचमे महब्भूए । इच्चेए पंच महब्भूया अणिम्मिया अणिम्माविया अकडा णो कित्तिमा णो कडगा अणाइया अणिहणा अवंझा अपुरोहिया सतंता सासया ।
२९ अहावरे तच्चे पुरिसजाए ईसरकारणिए त्ति आहिज्जइ । इह खलु पाइणं वा जाव संतेगइया मणुस्सा भवंति अणुपुव्वेणं लोयं उववण्णा, तं जहा- आरिया वेगे जाव तेसिं च णं महंते एगे राया भवइ जाव सेणावइपुत्ता । तेसिं च णं एगइए सड्ढी भवइ, कामं तं समणा य माहणा य पहारिंसु गमणाए जाव जहा मे एस धम्मे सुअक्खाए सुपण्णत्ते भवइ ।
आयछट्ठा पुण एगे एवमाहु- सतो णत्थि विणासो, असतो णत्थि संभवो । एतावताव जीवकाए, एतावताव अत्थिकाए, एतावताव सव्वलोए, एयं मुहं लोगस्स करणयाए, अवियंतसो तमामवि ।
से किणं किणावेमाणे, हणं घायमाणे, पयं पयावेमाणे, अवि अंतसो पुरिसमवि विक्किणित्ता घायइत्ता, एत्थ वि जाणाहि णत्थि एत्थ दोसो ।
ते णो एयं विप्पडिवेदेंति, तं जहा- किरिया इ वा जाव अणिरए इ वा । एवामेव ते विरूवरूवेहिं कम्मसमारंभेहिं विरूवरूवाइं कामभोगाई समारंभइ भोयणाए । एवामेव ते अणारिया विप्पडिवण्णा तं सद्दहमाणा तं पत्तियमाणा जाव इति ते णो हव्वाए णो पाराए, अंतरा कामभोगेसु विसण्णा ।
दोच्चे पुरिसज्जाए पंचमहब्भूइए त्ति आहिए ।
इह खलु धम्मा पुरिसादीया पुरिसोत्तरिया पुरिसप्पणीया पुरिससंभूया पुरिस - पज्जोइया पुरिसमभिसमण्णागया पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति ।
से जहाणामए गंडे सिया सरीरे जाए सरीरे संवुड्ढे सरीरे अभिसमण्णागए सरीरमेव अभिभूय चिट्ठइ । एवामेव धम्मा वि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति ।
से जहाणामए अरइयं [अरई] सिया सरीरे जाया, सरीरे संवुड्ढा, सरीरे अभिसमण्णाग सरीरमेव अभिभूय चिट्ठइ । एवामेव धम्मा पुरिसादिया जाव पुरिस- मेव अभिभूय चिट्ठेति ।
पुढवि
से जहाणामए वम्मिए सिया पुढविजाए पु ुढविसंवुड्ढे पुढविअभिसमण्णा अभिभूय चिट्ठइ । एवामेव धम्मा वि पुरिसादिया जाव अभिभूय चिट्ठति ।
से जहाणामए रुक्खे सिया पुढविजाए पुढविसंवुड्ढे पुढविअभिसमण्णागए पुढविमेव अभिभू चिट्ठइ । एवामेव धम्मा वि पुरिसादिया जाव अभिभूय चिट्ठति ।
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