Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Mool Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman
Publisher: Global Jain Agam Mission

View full book text
Previous | Next

Page 62
________________ २५ २६ २७ २८ ३० ३१ ३२ सुयगडांग सूत्र - बीओ सुयखंधो इह खलु पंच महब्भूया जेहिं णो विज्जइ किरिया इ वा अकिरिया इ वा सुकडे इ वा दुक्क इ वा कल्लाणे इ वा पावए इ वा साहू इ वा असाहू इ वा सिद्धि इ वा असिद्धि इ वा णिरए इ वा अणिरए इ वा अवि यंतसो तणमायमवि । |३३ तं च पदुद्देसेणं [पिहुद्देसेणं] पुढोभूयसमवायं जाणेज्जा, तं जहा- पुढवी एगे महब्भू, दोच्चे महब्भूए, तेऊ तच्चे महब्भूए, वाऊ चउत्थे महब्भूए, आगासे पंचमे महब्भूए । इच्चेए पंच महब्भूया अणिम्मिया अणिम्माविया अकडा णो कित्तिमा णो कडगा अणाइया अणिहणा अवंझा अपुरोहिया सतंता सासया । २९ अहावरे तच्चे पुरिसजाए ईसरकारणिए त्ति आहिज्जइ । इह खलु पाइणं वा जाव संतेगइया मणुस्सा भवंति अणुपुव्वेणं लोयं उववण्णा, तं जहा- आरिया वेगे जाव तेसिं च णं महंते एगे राया भवइ जाव सेणावइपुत्ता । तेसिं च णं एगइए सड्ढी भवइ, कामं तं समणा य माहणा य पहारिंसु गमणाए जाव जहा मे एस धम्मे सुअक्खाए सुपण्णत्ते भवइ । आयछट्ठा पुण एगे एवमाहु- सतो णत्थि विणासो, असतो णत्थि संभवो । एतावताव जीवकाए, एतावताव अत्थिकाए, एतावताव सव्वलोए, एयं मुहं लोगस्स करणयाए, अवियंतसो तमामवि । से किणं किणावेमाणे, हणं घायमाणे, पयं पयावेमाणे, अवि अंतसो पुरिसमवि विक्किणित्ता घायइत्ता, एत्थ वि जाणाहि णत्थि एत्थ दोसो । ते णो एयं विप्पडिवेदेंति, तं जहा- किरिया इ वा जाव अणिरए इ वा । एवामेव ते विरूवरूवेहिं कम्मसमारंभेहिं विरूवरूवाइं कामभोगाई समारंभइ भोयणाए । एवामेव ते अणारिया विप्पडिवण्णा तं सद्दहमाणा तं पत्तियमाणा जाव इति ते णो हव्वाए णो पाराए, अंतरा कामभोगेसु विसण्णा । दोच्चे पुरिसज्जाए पंचमहब्भूइए त्ति आहिए । इह खलु धम्मा पुरिसादीया पुरिसोत्तरिया पुरिसप्पणीया पुरिससंभूया पुरिस - पज्जोइया पुरिसमभिसमण्णागया पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति । से जहाणामए गंडे सिया सरीरे जाए सरीरे संवुड्ढे सरीरे अभिसमण्णागए सरीरमेव अभिभूय चिट्ठइ । एवामेव धम्मा वि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति । से जहाणामए अरइयं [अरई] सिया सरीरे जाया, सरीरे संवुड्ढा, सरीरे अभिसमण्णाग सरीरमेव अभिभूय चिट्ठइ । एवामेव धम्मा पुरिसादिया जाव पुरिस- मेव अभिभूय चिट्ठेति । पुढवि से जहाणामए वम्मिए सिया पुढविजाए पु ुढविसंवुड्ढे पुढविअभिसमण्णा अभिभूय चिट्ठइ । एवामेव धम्मा वि पुरिसादिया जाव अभिभूय चिट्ठति । से जहाणामए रुक्खे सिया पुढविजाए पुढविसंवुड्ढे पुढविअभिसमण्णागए पुढविमेव अभिभू चिट्ठइ । एवामेव धम्मा वि पुरिसादिया जाव अभिभूय चिट्ठति । 58

Loading...

Page Navigation
1 ... 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105